उर्दू व्यंग्य – किस्सा दाढ़ के दर्द का
मैं इससे पहले पेट दर्द , सिर दर्द , कमर दर्द , घुटनों का दर्द , दिल का दर्द , कौम का दर्द , औलाद के दर्द से लेकर ख्वाजा मीर “दर्द” तक के सभी दर्द से परिचित हो चुका था | लेकिन इस दाढ़ के दर्द ने सारे दर्द को बौना कर दिया | इसने यकीन दिला दिया कि दाढ़ का दर्द सभी दर्द का सरदार है | इस दर्द ने शायर के उस कलाम को याद दिला दिया जिसमें कहा गया है – दर्द हद से बढ़ जाये तो दवा होता है |
मेरे को शायर की इन बातों पर कभी यकीन नही आया था क्योंकि आज तक मेरा कोई दर्द हद से नही बढ़ा था | आज विश्वास हो गया कि दाढ़ का दर्द ही वह दर्द है जो हद से बढ़ जाने की क्षमता रखता है | कहने का मतलब यह है कि अगर सीधी तरफ़ के जबड़े की दाढ़ में दर्द हो रहा है तो वह दाढ़ तक ही सीमित नही रहता है बल्कि वह उस हद से गुज़र कर आपके गाल को जबड़े से चार पांच इंच दूर कर देता है | यह गाल और जबड़े के बीच एक ऐसी जगह निर्मित कर देता है जो न गाल की जगह होती है न जबड़े की |
उस वक्त ऐसा लगता है आपका गाल आपके शरीर से बहुत दूर है | जब दाढ़ का दर्द लिये आदमी सड़क पर चलता है तो ऐसा लगता है उसका गाल उससे आगे चल रहा है और आप उसे पकड़ने के लिये उसके पीछे पीछे भाग रहे हैं | कभी कभी तो ऐसा भी लगता है कि जो गाल आपके साथ साथ चल रहा है वह आपका नही किसी और का गाल है | इस वक्त बीच बीच में जो दर्द की चमक उठती है वही दाढ़ के दर्द की बुलंदी है | अगर यह चमक न हो तो दाढ़ के दर्द में कोई मज़ा ही न हो |
जब मेरे सीधे तरफ़ के जबड़े की दाढ़ में दर्द हुआ तो मेरे को ऐसा लगने लगा मेरा शरीर दाहिनी तरफ़ झुक गया है | यह वैसी ही स्थिति थी मानो किसी मेटाडोर में पूरा माल एक ही तरफ़ लोड कर दिया गया हो अब ड्रायव्हर गाड़ी कैसे चलाये ? दर्द के बोझ से शरीर एक तरफ़ झुक गया तो मेरे को चलने में दिक्कत होने लगी | आईने में चेहरा देखा तो लगा आईने में मैं नही बल्कि एक भूत खड़ा है |
मैं अपना गाल और दर्द लिये दांत के डाँक्टर के पास गया | यह डाँक्टर मेरा परिचित था लेकिन दर्द और सूजे गाल के साथ देखा तो पहचानने से इंकार कर दिया | ठीक किया , अगर डाँक्टर हर मरीज़ को पहचानने लगे तो फ़ीस कैसे वसूलेगा ? मैंने नाराज़गी ज़ाहिर की तो डाँक्टर साहब ने कहा – सूजे गाल पर हाथ रखे हर मरीज़ मेरे को एक जैसे लगते है | लगता है ये सब हमशक्ल हैं |
इस दुआ सलाम के बाद जब मैं दाढ़ का किस्सा सुनाना चाहा तो डाँक्टर साहब बोले – कुछ कहने की ज़रूरत नही है आपका गाल आपकी कहानी कह रहा है | इतना कह कर उन्होंने मेरा मुंह खोलना चाहा तो लगा मेरे मुंह पर ताला लग गया है | बड़ी कारीगरी से उन्होंने मुंह में ऐसा रास्ता बनाया कि उन्हें मेरी दाढ़ दिखने लगी | उसे देखने के बाद मेरे खुले मुंह को गपाक से बंद करने के बाद कहा – इस समय तो इस दाढ़ को नही निकाला जा सकता आप कुछ दिन और इसके साथ संबंध बनाये रखे | मैंने कहा – डाँक्टर साहब मेरे को इस दर्द के साथ , साथ निभाने में कोई दिक्कत नही है लेकिन मेरा चेहरा जो एक तरफ़ झुक गया है उसे तो ठीक कर दीजिये | ये मुंह के साथ मैं बीवी के सामने किस मुंह से जाऊं ? मेरा यह चेहरा देख उसके चेहरे से हवाइयां उड़ जायेगी तब मेरा चेहरा उससे और उसका चेहरा मुझ से न देखा जायेगा | डाँक्टर साहब भले दर्द रह जाये चलेगा लेकिन चेहरे की बिगड़ी बनावट ठीक कर दीजिये |
मेरे निवेदन पर डाँक्टर साहब ने गंभीरता से सोचा फिर मेरी ठुड्डी पर हाथ रख मेरे चेहरे का मुआयना किया और बोले – एक तरफ़ गाल में सूजन है और दूसरी तरफ़ का गाल सपाट है | इससे चेहरे का बैलेंस बिगड़ गया है | अगर किसी तरह तुम्हारे बांये तरफ़ के जबड़े में भी दर्द पैदा कर दिया जाये और उस तरफ़ भी सूजन हो जाये तो चेहरा अप – डाउन नही लगेगा |
डाँक्टर साहब की बात सुन वहां से भागने के अलावा और कोई चारा नही था | मैं दाहिने गाल पर हाथ रखे कराहते कराहते घर पंहुचा तो वहां नई मुसीबत खड़ी हो गई | मेरे को तो घर का माहौल ही बदला बदला लगने लगा | पत्नी ने दरवाज़ा खोला मेरे को देखी और चुपचाप अंदर चली गई | जो बच्चे मेरे घर में आते ही मेरे से लिपट जाते थे मेरे को देख वापस कमरे में चले गये | घर में पसरी गहरी ख़ामोशी परेशान करने लगी | आखिर मैंने गाल को संभालते हुए कहा – सब को सांप सूंघ गया है क्या ? कोई कुछ बोलता क्यों नही ?
पत्नी बोली – उतरा हुआ चेहरा और मुंह फुलाये घर में आओंगे तो कौन बात करेंगा | लगता है आज फिर बॉस ने डांटा है | अब आफ़िस का गुस्सा घर वालों पर उतारोंगे | यह दुनियां के सभी आदमियों की पुरानी आदत है बाहर तो किसी के सामने तुम लोगों की चलती नही है फिर घर आकार घर सिर पर उठा लेते हो | मैं तो आपके घर में पहला कदम रखते ही समझ गई थी कि आज आपका मूड ठीक नही है |
जब मैंने उन लोगों को बताया कि मेरे को आफ़िस में डांट नही पड़ी है बल्कि मेरी दाढ़ में बहुत दर्द है इसलिये चेहरा उतरा और मुंह फूला हुआ है | यह सुन कर घर वालों को बहुत ख़ुशी हुई और बच्चे मेरे से लिपट गये
मूल रचनाकार – मुजतबा हुसैन
अनुवाद – अख़तर अली