ओस की बूंदें
बूंदों को भी भय सता रहा
वे याद करने लगी
अपनी दो पलों की
जिंदगी को।
क्योंकि अब ओस की बूंदें
सुबह
पत्तो और घास पर बैठने
नही आ पा रही
शायद ये बिगड़ते
पर्यावरण का नतीजा हो।
ये बूंदें
पुनर्जन्म लेंगी
फिर से आने वाले मौसम में।
क्योंकि प्रकृति ने
इन्हे दे रखी है शक्तियाँ
बूंद -बूंद से सागर भरने की।
— संजय वर्मा “दृष्टि”