लघुकथा – अरमान
माँ! मुझे नौकरी मिल गई है। सुदेश की यह बात सुनकर उसकी माँ शीला मारे खुशी के उछल पड़ी। शीला ही क्यूँ घर के सारे सदस्य बेहद प्रसन्न और रोमांचित थे। कोई रिश्तेदारों, पड़ोसियों और मित्रों को फोन करके अपनी खुशी शेयर करता तो साथ में मुँह मीठा कराने का सिलसिला भी चलता रहा। रात्रि के भोजन के बाद पूरा परिवार एक साथ बैठा तो सपनों की उड़ान आरंभ हो गयी। सुदेश को लेकर हर किसी की आशायें थीं, सपने थे।
बातों ही बातों में सुदेश की माँ ने कहा- ’’सुदेश की शादी में मैं तो दहेज में जी-भर के पैसे लूँगी, अपने हर अरमान पूरा करूँगी। आखिर सुदेश को सरकारी नौकरी जो मिली है। इतने धूमधाम से शादी करूँगी कि सारा शहर देखेगा। सबके लिए कपड़े, गहने, घर के सामान और भी बहुत कुछ।‘‘
’’दादी! तो क्या आप चाचू को बेचेंगी ? शादी का मतलब बेचना होता है क्या ?‘‘ तभी अपनी दादी की गोद में बैठी रुचि बोल उठी।
बहू ने बेटी को चुप कराने का प्रयास किया पर वह तपाक से बोल उठी- ’’आपने ही तो बताया था कि जब हम कुछ बेचते हैं तो बदले में पैसे मिलते हैं।’’
अचानक माहौल में सन्नाटा छा गया था।
— आकांक्षा यादव