माता गांधारी
मन की गांठ थोड़ा छोड़ के
एक कदम आगे बढा देना
मन मस्तिष्क के परदे को तोड़
एक कदम आगे बढा देना
कुछ तो संजोकर आखिर रखा होगा तुम ने
नैना की उस चमक की परिभाषा समझा देना
एक रास्ते एक ही मंजिल
फिर एकाकीपन कैसा
ठीक नहीं रखना खौलते पानी मन के अंदर हैं रखना
तुम भी करतीं
मै भी करतीं अपने अपने हिस्से का सर्वस्व न्यौछावर
फिर बोलों रिश्तों की कुरुक्षेत्र में
बहू हूई कैसे गलत
आंखो की पट्टी तो खोलों
कुछ तो माता गांधारी बोलों
— अभिलाषा श्रीवास्तव