राजनीति

राष्ट्रवाद के दौर में राहुल की जातिवादी राजनीति

बिहार की राजनीति एक नए दौर में प्रवेश कर रही है, और इस दौर के केंद्र में इस बार राहुल गांधी हैं। जब पूरा देश ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद राष्ट्रवाद की राजनीति की ओर फिर से झुक गया, राहुल गांधी ने इसके ठीक उलट जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय को अपनी राजनीतिक प्राथमिकता बना लिया है। यह वही बिहार है, जिसने कभी मंडल राजनीति की नींव रखी थी और जहां जातीय समीकरण अब भी हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में राहुल गांधी का यह फोकस न केवल एक रणनीतिक चुनावी दांव है, बल्कि यह संकेत भी है कि कांग्रेस अब केवल राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति की नब्ज पर भी हाथ रखना चाहती है।

बीते पांच महीनों में राहुल गांधी बिहार के चार दौरे कर चुके हैं और हर बार उन्होंने अलग-अलग जिलों को चुना है। यह चयन यूं ही नहीं है, बल्कि हर दौरे के पीछे सामाजिक समूहों की स्पष्ट गणना है। दरभंगा में उन्होंने दलित छात्रों से मिलने की कोशिश की, लेकिन प्रशासन ने उन्हें अंबेडकर छात्रावास में जाने की अनुमति नहीं दी। इसके बावजूद राहुल गांधी ने हार नहीं मानी। उन्होंने पदयात्रा शुरू की, पुलिस और प्रशासनिक अफसरों से बहस की और आखिरकार टाउन हॉल में शिक्षा न्याय संवाद के जरिए अपनी बात रखी। यह कोई साधारण राजनीतिक दौरा नहीं था, बल्कि प्रतीकों से भरा हुआ एक बड़ा संदेश था।

राहुल गांधी ने दरभंगा में छात्रों से कहा कि देश की 90 फीसदी आबादी के पास कोई अवसर नहीं है। उन्होंने पूछा कि उच्च नौकरशाही में आपके कितने लोग हैं? डॉक्टरी पेशे में आपके कितने लोग हैं? शिक्षा व्यवस्था में आपके कितने लोग हैं? और फिर खुद ही जवाब दिया  “जीरो”। उन्होंने आगे कहा कि मनरेगा की सूची में मजदूरों की संख्या देखिए, वह 90 प्रतिशत आबादी से ही भरी हुई है। लेकिन जब बात सत्ता, संपत्ति और ठेकेदारी की आती है, तो सारा पैसा केवल 8 से 10 प्रतिशत लोगों के पास पहुंच जाता है। राहुल गांधी ने इसे लोकतंत्र की सबसे बड़ी विफलता बताया और कहा कि जब तक सामाजिक रूप से वंचित वर्ग एकजुट नहीं होंगे, तब तक कोई बदलाव संभव नहीं है।

राहुल गांधी की यह बात बिहार जैसे राज्य में खास असर डाल सकती है, जहां जातीय आधार पर लोगों की पहचान और उनकी सामाजिक स्थिति गहराई से जुड़ी हुई है। खास बात यह भी है कि राहुल गांधी केवल भाषणों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने दलित समाज के साथ वक्त बिताने और उनकी संस्कृति को समझने का प्रयास किया है। पटना के एक मॉल में उन्होंने दलित समाज के लोगों के साथ ‘फुले’ फिल्म देखी, जो सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा फुले के जीवन पर आधारित है। यह एक संदेश था कि कांग्रेस अब दलित राजनीति को केवल चुनावी गणित नहीं, बल्कि वैचारिक जिम्मेदारी मान रही है।

हालांकि, राहुल गांधी का यह अभियान राजनीतिक टकराव से अछूता नहीं रहा। दरभंगा दौरे के दौरान पुलिस प्रशासन ने उन्हें छात्रावास में प्रवेश से रोका, जिसे कांग्रेस ने दलितों से संवाद रोकने की साजिश करार दिया। प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया पर इसे दलित विरोधी रवैया बताते हुए बिहार सरकार पर हमला किया और लिखा कि अगर एक नेता दलित छात्रों से मिलना चाहता है तो उसमें क्या गलत है? दूसरी ओर प्रशासन का कहना है कि भारत में कहीं भी छात्रावासों में राजनीतिक कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी जाती, इसलिए उन्हें टाउन हॉल में अनुमति दी गई थी।

बिहार में कांग्रेस की यह सक्रियता महज बीजेपी के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह सहयोगी दल आरजेडी के लिए भी चुनौती बनती जा रही है। दरअसल, जिस प्रकार से राहुल गांधी सीधे तौर पर दलित-पिछड़े वर्ग को संबोधित कर रहे हैं, उससे आरजेडी का परंपरागत वोट बैंक खिसक सकता है। यही कारण है कि कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में कांग्रेस अब आरजेडी को भी राजनीतिक रूप से प्रतिद्वंद्वी मानने लगी है। ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला, बिहार में आरजेडी पर कांग्रेस की निगाह टिकी है।

लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस और आरजेडी की स्थिति लगभग बराबर रही। लेकिन यह बराबरी कई समीकरणों पर आधारित थी  जैसे पप्पू यादव का कांग्रेस के समर्थन में खड़ा होना। अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, कांग्रेस शायद खुद को आरजेडी की छाया से निकालकर स्वतंत्र ताकत के रूप में स्थापित करना चाहती है। यही वजह है कि राहुल गांधी के कार्यक्रमों में जातिगत न्याय, सामाजिक प्रतिनिधित्व, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे बार-बार सामने आते हैं, जो कि आरजेडी की पारंपरिक राजनीति का मूल आधार रहे हैं।

राहुल गांधी लगातार यह भी कहते रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार जातिगत जनगणना को लेकर दबाव में आई और उन्हें अंततः इसे स्वीकार करना पड़ा। कांग्रेस इसे अपनी जीत के रूप में प्रचारित कर रही है और राहुल गांधी बार-बार दोहरा रहे हैं कि जब तक समाज की सही तस्वीर हमारे पास नहीं होगी, तब तक न्याय संभव नहीं है। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि निजी संस्थानों में आरक्षण लागू किया जाना चाहिए और एससी-एसटी सब-प्लान का बजट पारदर्शी ढंग से लागू हो।

बीजेपी की रणनीति इस पूरे परिदृश्य में अलग है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद की भावना को फिर से जगाने की कोशिश की जा रही है। इसका असर भी दिखा है, लेकिन बिहार में राहुल गांधी की जातीय राजनीति के सामने बीजेपी को भी अब जवाब देना पड़ रहा है। बीजेपी नेता बार-बार यह कह रहे हैं कि जातीय जनगणना का क्रेडिट कांग्रेस नहीं ले सकती, क्योंकि इसे लागू करने का फैसला तो एनडीए सरकार ने किया है। फिर भी राहुल गांधी लगातार इसे अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के सामने रख रहे हैं।

यह दिलचस्प है कि जब राहुल गांधी को दरभंगा में छात्रों से मिलने से रोका गया, उन्होंने इसे उसी तरह से प्रचारित किया जैसे उन्होंने लोकसभा में बोलने न दिए जाने की घटनाओं को किया था। उनका यह तरीका विपक्ष को एक पीड़ित की तरह पेश करने का है, जो कि सत्ताधारी दल के अहंकार और तानाशाही के खिलाफ लड़ रहा है। यह छवि जनता के बीच एक भावनात्मक जुड़ाव पैदा करती है, खासकर तब जब मुद्दा दलित या पिछड़े वर्ग से जुड़ा हो।

कुल मिलाकर, राहुल गांधी ने बिहार चुनावों के लिए एक ऐसी पिच तैयार की है, जो अब तक बीजेपी और आरजेडी दोनों से अलग है। वह खुद को सामाजिक न्याय के एक नए प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं और इसमें उन्हें सीमित सफलता भी मिलती दिख रही है। अब यह देखना होगा कि बिहार की जनता इस नई कांग्रेस को कितनी गंभीरता से लेती है। क्या राहुल गांधी का जातीय न्याय का एजेंडा चुनाव में निर्णायक साबित होगा? क्या कांग्रेस आरजेडी को पछाड़कर प्रमुख विपक्ष बन पाएगी? और सबसे बड़ा सवाल, क्या राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस वह जनाधार फिर से हासिल कर पाएगी जो कभी उसका हुआ करता था?

बिहार की राजनीतिक बिसात पर बिछी यह चालें आने वाले दिनों में और रोचक मोड़ लेंगी, लेकिन इतना तय है कि राहुल गांधी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह सिर्फ संसद तक सीमित नेता नहीं, बल्कि जमीनी संघर्ष करने वाले राजनीतिक खिलाड़ी भी हैं। उनकी यह कोशिश, चाहे सफल हो या असफल, भारतीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे चुकी है  एक ऐसी बहस जो सामाजिक न्याय को फिर से केंद्रीय मुद्दा बना रही है। 

— अजय कुमार

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