मृग के दुश्मन
वन में मृग के अनगिन दुश्मन ।
हर पल शंका में रहता मन ।
व्याघ्र,भेड़िये, अजगर, मानव,
सब हैं रिपु, संकट में जीवन।
केवल तृण ,पत्ते, फल खाता,
कब वह ढूंढे मांस भरा तन ?
हर दिन मृग, मृगया बनते हैं,
चुप रहता है सारा कानन ।
जहर दंत या नख होते तो,
उससे डरता यह सारा वन ।
बने सरलता जब कमजोरी,
अतिशय आवश्यक टेढ़ापन।
——–डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी 19/05/25