पर्यावरण

हरित ऊर्जा उत्पादन के नए आयाम

बदलते वैश्विक परिदृश्य में, जहां जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा की चिंता बढ़ रही हैं, वहीं भारत ने हरित हाइड्रोजन की दिशा में एक साहसिक कदम उठाया है। हरित हाइड्रोजन को अक्सर भविष्य का ईंधन कहा जाता है। भारत इसे साकार करने में अग्रणी भूमिका निभाना चाहता है। इस दिशा में एक अहम पड़ाव तब आया, जब हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित ‘ एक राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान हरित हाइड्रोजन प्रमाणन योजना का शुभारंभ किया गया। यह योजना भारत के राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का अभिन्न अंग है। यह एक स्वच्छ ऊर्जा वाहक है, जिसका अर्थ है कि इस ऊर्जा को संग्रहीत कर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत नहीं है। जब हाइड्रोजन का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है, तो यह केवल पानी छोड़ता जिससे कोई हानिकारक उत्सर्जन नहीं होता। यह इसे जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल और गैस का एक आकर्षक विकल्प बनाता है, जो जलाने पर कार्बन डाइआक्साइड और अन्य प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं।

हाइड्रोजन के उत्पादन के तरीके आधार पर इसे आमतौर पर रंगों से पहचाना जाता है। ‘ग्रे ‘ग्रे हाइड्रोजन’ में प्राकृतिक गैस या अन्य जीवाश्म ईंधनों का उपयोग कर हाइड्रोजन निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित होती है, जो ग्रीनहाउस गैस है और जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है। इसलिए, ग्रे हाइड्रोजन स्वच्छ नहीं है। ब्लू हाइड्रोजन भी जीवाश्म ईंधनों (आमतौर पर प्राकृतिक गैस) से ही उत्पादित होता है, लेकिन इस प्रक्रिया में उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइआक्साइड को किसी तरह संग्रहीत कर लिया जाता है। यदि यह प्रभावी ढंग से किया जाता है, तो ब्लू हाइड्रोजन का उत्सर्जन ग्रे हाइड्रोजन की में काफी कम तुलना है, लेकिन होता । यह पूरी तरह से उत्सर्जन मुक्त नहीं है और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर है। वहीं ग्रीन हाइड्रोजन, हाइड्रोजन का सबसे वांछनीय और स्वच्छ रूप है ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन पानी के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया में पानी को हाइड्रोजन और आक्सीजन में विभाजित करने के लिए बिजली का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में कोई जीवाश्म ईंधन नहीं जलता और बिजली नवीकरणीय स्रोतों से आती है, इसलिए ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन लगभग उत्सर्जन मुक्त होता है। यही कारण है कि इसे हरित कहा जाता है।

| हाइड्रोजन का उत्पादन घरेलू स्तर पर किया जा सकता है, खासकर भारत विशाल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता (सौर और पवन) का उपयोग करके। यह जीवाश्म ईंधन आयात पर निर्भरता को कम करेगा और देश की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाएगा। भारत दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है। अपने जलवायु लक्ष्यों पूरा करने और पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए, भारत को अपने उत्सर्जन में भारी कमी लाने की आवश्यकता है। हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के विकास से नए उद्योग, विनिर्माण इकाइयां और सेवा क्षेत्र विकसित होंगे। इससे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होंगे, जिनमें नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण और संचालन, हाइड्रोजन पाइपलाइन बिछाना और हरित हाइड्रोजन के उपयोग के लिए नई प्रौद्योगिकियों का विकास शामिल है। जैसे-जैसे वैश्विक स्तर पर हरित हाइड्रोजन की मांग बढ़ेगी, भारत अपनी बड़ी उत्पादन क्षमता का लाभ उठा कर हरित हाइड्रोजन और इससे बने उत्पादों (जैसे ग्रीन अमोनिया) का निर्यात कर सकता है। यह देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने का बड़ा स्रोत बन सकता है। इन सभी महत्त्वों को पहचानते हुए, भारत सरकार ने चार जनवरी 2023 को राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी। यह मिशन भारत को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने की महत्त्वाकांक्षी पहल है। मिशन के प्रमुख उद्देश्यों मे, 2030 तक कम से कम पचास लाख मीट्रिक टन प्रतिवर्ष हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता विकसित करना और जीवाश्म ईंधन आयात में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की कमी लाना है।

हरित हाइड्रोजन प्रमाणन योजना पारदर्शिता और विश्वसनीयता का आधार है। योजना का मुख्य कार्य इस बात को प्रमाणित करना है कि उत्पादित हाइड्रोजन वास्तव में हरित है। यह उत्पादन प्रक्रिया में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की एक निश्चित सीमा निर्धारित करके किया जाएगा। केवल वही हाइड्रोजन जो इस सीमा से कम उत्सर्जन के साथ उत्पादित होता है, उसे हरित हाइड्रोजन के रूप में प्रमाणित किया जाएगा। प्रमाणन योजना यह सुनिश्चित करेगी कि बाजार में बेचे जाने वाले हाइड्रोजन’ ‘के’ दावे सच्चे हैं और वे एक निर्धारित पर्यावरणीय मानक को पूरा करते हैं। साथ ही प्रमाणन योजना एक तंत्र स्थापित करेगी, जिससे यह पता लगाया जा सके कि हाइड्रोजन कहां और कैसे उत्पादित किया गया था। जब उपभोक्ताओं, उद्योगों और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को यह विश्वास होगा कि प्रमाणित हरित हाइड्रोजन वास्तव में स्वच्छ है, तो बाजार का विकास तेजी से होगा। प्रमाणन एक गुणवत्ता आश्वासन मुहर की तरह काम करेगा।

हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के विकास और प्रमाणन योजना के कार्यान्वयन में कुछ चुनौतियां भी हैं। दरअसल, वर्तमान में, ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन महंगा है। लागत कम करने के लिए प्रौद्योगिकियों को परिष्कृत करने और पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं को प्राप्त करने आवश्यकता है। हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, भंडारण और परिवहन के लिए विशाल नए बुनियादी ढांचे के निर्माण की आवश्यकता होगी। उत्पादन, गुणवत्ता और र सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को विकसित करन “और उनका पालन करना महत्त्वपूर्ण है। प्रमाणन योजना इस दिशा में एक बड़ा कदम है। हरित हाइड्रोजन क्षेत्र के लिए कुशल जनशक्ति तैयार करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है। भारत सरकार इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्रिय कदम उठा रही है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचा विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

हरित हाइड्रोजन भारत के स्वच्छ ऊर्जा भविष्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। भारत का राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन इस क्षमता को साकार करने लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। हरित हाइड्रोजन प्रमाणन योजना का शुभारंभ इस मिशन की दिशा में एक निर्णायक कदम । इस योजना का शुभारंभ भारत की हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह न केवल भारत के 2030 तक पचास लाख मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा, बल्कि भारत को वैश्विक हरित हाइड्रोजन परिदृश्य में एक विश्वसनीय और अग्रणी खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगा। जैसे-जैसे दुनिया स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रही है, भारत का हरित हाइड्रोजन मिशन और उसकी प्रमाणन योजना एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह दिखाता है कि कैसे एक राष्ट्र अपनी ऊर्जा चुनौतियों का सामना, आर्थिक अवसर पैदा और पर्यावरण की रक्षा भी कर सकता है। यह हरित ऊर्जा का एक नया अध्याय है, और भारत इस अध्याय को लिखने के लिए पूरी तरह तैयार है।

— विजय गर्ग

*विजय गर्ग

शैक्षिक स्तंभकार, मलोट

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