राजनीति

अमेरिका और ट्रंप विश्व के लिए खतरा

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका और विश्व इतिहास के सबसे  बड़े बारूदी शासक। वैश्विक इतिहास के सबसे बड़े बड़बोले बादशाह।

हिंदुस्तान में 14वीं शताब्दी के मध्य-मध्यपूर्व में ग्यासुद्दीन तुगलक के सबसे बड़े बेटे मोहम्मद बिन तुगलक का शासन था। उसे इतिहास में पागल बादशाह कहा जाता है। वैसे ही अमेरिकी राष्ट्रपति इनसे कम नजर नहीं आते। उनकी फितरत(प्रवृति) अस्थिर है। वो दिन में कुछ और बोलते है और रात को कुछ और। ट्रंप कब क्या बोलेंगे यह शायद स्वयं ट्रंप को भी नहीं पता। उनके लिए गये हर फैसले वैश्विक  समुदाय के लिए परमाणु विस्फोटक की तरह है। अपने पिछले कार्यकाल में चौबीस घंटे में 42 बार  झूठ बोलते थे। सनकी मिजाज में कोरियाई तानाशाह से रिश्ता रखते है। हाल में जम्मू कश्मीर के पहलगाम में घटित आतंकवादी घटना के बाद भारत-पाक के बीच उपजे विवाद में जिस तरह का उनका रवैया रहा है उससे भारत को अमेरिका के साथ अपने सम्बंधों को फिर से तलाशना होगा।

   ट्रंप का भारत-पाक विवाद में पहले तो किनारा कर लेना और भारत की आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई को शर्मनाक बताकर पाकिस्तान और भारत को एक समान स्तर पर रखकर किनारा करना फिर अचानक सीजफायर की घोषणा करना,श्रेय लेने के लिए हर मंच से बार-बार घोषणा करना फिर अपने ही बयान से पलट जाना। ये कहना सीजफायर मैंने कराया है मुझे क्रेडिट नहीं मिला, फिर पलट जाना कि मैंने सीजफायर नहीं कराया सिर्फ मदद की,फिर अगले ही ये कहना मुझे क्रेडिट नहीं मिला मैंने सीजफायर कराया। 

इसी दौरान अपनी अरब यात्रा में इतिहास की सबसे बड़ी हथियारों की डील करना। ईरान का परमाणु डर दिखाकर इस्लाम को इस्लाम के खिलाफ खड़ा कर दिया। ईरान की गर्दन दबोचने के लिए ये डील नहीं की बल्कि भारत-पाक संघर्ष में अमेरिका, तुर्की, चीन के हथियार को भारत ने अपनी स्वदेशी तकनीकी से ध्वस्त कर दिया। ट्रंप को लगा कि कहीं भारत के स्वदेशी हथियारों और तकनीकी की वैश्विक मांग जोर न पकड़ ले। भारत का स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम,ब्रह्मोस मिसाइल,रूसी एयर डिफेंस सिस्टम, इजरायली ड्रोन और हथियार के संयुक्त ऑपरेशन ने विश्व में चीनी हथियार पर तो प्रश्न लगाया ही,अमेरिका के हथियारों पर भी लगाम लगा दी। वैश्विक हथियार बाजार में ये चर्चा जोरों से चले कि अमेरिकी फाईटर जेट,रडार,डिफेंस सिस्टम भारत की स्वदेशी तकनीकी और भारतीय सेना की दक्षता ने उसे तबाह कर दिया उससे पहले ही ट्रंप ने सऊदी अरब के साथ डील कर डाली ताकि अमेरिकी हथियारों की वैश्विक मांग कमजोर हो उससे पहले ही ये विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिए ये डिफेंस डील आनन-फानन में कर डाली। लेकिन भारत की ब्रह्मोस का धमाका सिर्फ पाकिस्तान में नहीं हुआ अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति की कुर्सी के नीचे भी हो गया। भारतीय तकनीकी का किसी के पास कोई तोड़ और जबाव नहीं है। 

ट्रंप का ये कहना कि मैंने बिजनेस का डर दिखाकर सीजफायर कराया। भारत की ओर से ये कहना कि हमारी व्यापार पर कोई बातचीत नहीं हुई। ट्रंप की ये बकवाद पागलपंथी नहीं है बल्कि ब्लैकमेलिंग है। भारत को अमेरिका के साथ व्यापार की जितनी जरूरत है उससे कहीं अधिक अमेरिका को भारतीय बाजार की आवश्यकता है। यदि यूरोपियन यूनियन के साथ व्यापार डील हो जाती है तो भारत को अमेरिका का विकल्प मिल जायेगा और यूरोप के बाजार को भारत का वृहद अपार संभावनाओं वाला बाजार मिल जायेगा। 

ट्रंप की टैरिफ नीति एशिया के व्यापार को चौपट करने की नीति है। टैरिफ वार से सिर्फ अमेरिका को खतरा है। यदि भारत अपने सहयोगी व्यापारी देश अमेरिका की बजाय दूसरे यूरोपीय और अफ्रीकी और एशिया के साथ व्यापार को आगे बढ़ा ले, छोटे-छोटे देशों को साथ जोड़कर चले। ट्रंप विश्व को बारूद के ढेर पर खड़ा कर रहे है। शांति के पक्षधर बनने वाले ट्रंप से यूक्रेन- रूस जंग को नहीं रूकवा सके। इजराइल-हमास जंग की रोक पाये। अमेरिका हमेशा सीधी जंग में उतरने की बजाय युद्ध में दो देशों को झोंककर अपने हथियार सप्लाई को बढ़ा देता है और शांतिदूत बनकर अपनी चौधराहट चलाने लगता है। लेकिन भारत के सम्बंध में उनकी प्लानिंग काम नहीं आ रही इसलिए बार-बार जानबूझकर उलूल-जलूल बयान दे रहे है। 

अमेरिका भारत को नजरअंदाज करके आगे नहीं बढ़ सकता। एशिया को अमेरिका जानबूझकर तनाव की ओर ले जाना चाहते है। एशिया ही अमेरिका का प्रतिस्पर्धी है। पहले अमेरिका हिंद महासागरीय क्षेत्र को एशियन पेसेफिक रिजन कहता था। अब इंडो पेसिफिक रिजन कहने लगा। एशिया में अस्थिरता और तनाव अमेरिका के लिए फायदेमंद है। अमेरिका चाहता कि भारत चीन को रोके और भारत को राकने के लिए पाकिस्तान का आतंकवाद जरूरी है। इसीलिए ट्रंप भारत और पाकिस्तान को जानबूझकर एक पलड़े में रख रहे है।

आज भारत का नेतृत्व सक्षम है ट्रंप और विश्व को इसी बात का खौफ है। दुनिया में जहां कहीं भी बारूदी बिसात बिछी उसका कारण अमेरिका ही है। जंग छेड़कर पीछे हट जाना और मदद के नाम पर अपने हथियारों को बेचना अमेरिका की फितरत में है। भारत इसलिए भी ट्रंप को खटक रहा है क्यों कि भारत की इकोनॉमी 4.2 ट्रिलियन डॉलर के साथ चौथे नम्बर पर जल्दी ही भारत अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर आने वाला है। अमेरिका को डर है का भारत दो दशक में सबसे बड़ी इकोनॉमी वाला देश बन जायेगा।

अमेरिका अपने स्वार्थ और हित के लिए किसी मित्र राष्ट्र को धोखा दे सकता है। जंग प्रभावित देशों की मदद के नाम पर वहाँ की खनिज सम्पदा को अपने नियंत्रण कर लेता है। 

अमेरिका हमेशा से अपने एक हाथ में व्यापार और दूसरे हाथ में बारूद रखता है। डर का माहौल पैदा करके व्यापार और हथियार की डील करता है। कोई देश नहीं मानता है तो जंग में झौंक देता है, फिर व्यापार का लालच देकर लोलीपॉप देता है जो चूसने पर  न पूरी होती है न ही मीठी होती है। 

— डॉ. ज्ञानीचोर

ज्ञानीचोर

शोधार्थी व कवि साहित्यकार मु.पो. रघुनाथगढ़, जिला सीकर,राजस्थान मो.9001321438 ईमेल- [email protected]

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