दोहा
सज धज के सब नारियाँ, वट को पूजें आज।
विनती करतीं ईश से, शोभित रखना साज।।
विनती सुनिए देव जी, रक्षित रहे सुहाग।
पति में बसते प्राण मम, प्रकृति जनित अनुराग।।
धर्म सनातन में छिपा, दिव्य शक्ति का राज।
सत्यवान की सत कथा, रखी शक्ति ने लाज।।
वापस पाए प्राण पति, हुआ असंभव कर्म।
सत्यवान जीवित हुआ, ग्रंथ कहें यह मर्म।।
सच्ची श्रद्धा भाव से, बदले भाग्य विधान।
भिन्न भिन्न सत ग्रंथ यह, वर्णित करते ज्ञान।।
रक्षा निज सिंदूर की, करता मातृ समाज।
संकट कितना हो बड़ा, रखें नारियाँ लाज।।
मातृ शक्ति के त्याग का, वर्णन कब आसान।
त्याग तपस्या मूर्ति ये, रखे जगत नित ध्यान।।
नारी के हर त्याग का, करे जगत सम्मान।
नारी है नारायणी, रखे हृदय में ध्यान।।
— डॉ. ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम