कविता – विदाई की बेला
करवटों में बीती रात
कुछ तो भय रहा होगा
बिटिया चली पराई होके
कुछ तो मन डरा डरा होगा
जिसकी हड़खेलियों से
घर आंगन मुस्कुराता रहा
जिसकी बचकानी बातों से
परिवार सदा खिलखिलाता रहा
जुदाई की घड़ी नजदीक आई
बाबुल से ये न सहन होगा
बेटा जैसा अभिमान रही जो
विदाई का सफर कठिन होगा
सजने लगा घर द्वार चमाचम
फटाखों से गली गूंज उठी
ह्रदयपटल पर आज देखो
भावनाओं की धूल चढ़ी
न आँखें वो बाबुल से मिलाती
न बाबुल उसे देख रहे
मिलकर जो फूटेगा गुबार
लोग खड़े अनभिज्ञ रहे
एक एक करके रस्म निभाते
कलेजा मुंह को आया है
बिटिया पराई देकर ईश्वर ने
बाबुल के जी को जलाया है
अगली सुबह जब जाएगी वो
सूना घर कर जाएगी
दीवारें तो मौन रहेगी
दिल में आंधी आएगी
सोच सोच बाबुल के आंसू
आ आकर रुक जाते हैं
कैसे कटेगी उम्र हमारी
करवटों में रात बिताते हैं।
— जयति जैन ‘ नूतन’