राजनीति

इस युद्ध का भविष्य अनिश्चित है, इसके परिणाम पूरी दुनिया को प्रभावित करेंगे

ईरान-इजरायल युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है। दोनों देशों के बीच तनाव और संघर्ष मध्य पूर्व की भू-राजनीति का एक गंभीर और दीर्घकालिक मुद्दा बनता जा रहा है, जो 2025 में और अधिक गहरा हो गया है। दोनों देशों के बीच छिड़ा युद्ध, जो पहले केवल छद्म युद्ध या प्रॉक्सी संघर्षों तक सीमित था,उसके हालात काफी बदल चुके हैं और यह अब सैन्य टकराव का रूप ले चुका है, दोनों देश एक-दूसरे को खत्म कर देने की धमकी दे रहे हैं। इन देशों का युद्ध क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है। वहीं अन्य देश भी इस युद्ध को खत्म कराने की कोशिश करने की बजाये दोनों देश के बीच एक पक्ष बनते जा रहे हैं। अमेरिका, रूस, चीन ,ब्रिटेन जैसे तमाम देश अपने देश के हितों को ध्यान में रखकर फैसला ले रहे हैं। सही-गलत का कोई पैमाना ही नहीं रहा है।दोनों देश एक -दूसरे पर घातक हथियारों से हमला कर रहे हैं।

 गौरतलब यह है कि  ईरान और इजरायल के बीच शत्रुता की जड़ें 1979 की ईरानी क्रांति में निहित हैं, जब आयतुल्लाह खोमैनी के नेतृत्व में इस्लामी गणतंत्र की स्थापना हुई। इस क्रांति ने न केवल ईरान की विदेश नीति को पुनर्परिभाषित किया, बल्कि इजरायल को एक प्रमुख शत्रु के रूप में चिह्नित किया। ईरान ने इजरायल को अवैध ज़ायोनी शासन के रूप में देखा और फिलिस्तीनी मुद्दे को अपने क्षेत्रीय प्रभाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। दूसरी ओर, इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्र में इसके प्रभाव, विशेष रूप से हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे समूहों के समर्थन को, अपने अस्तित्व के लिए खतरे के रूप में देखा। यह वैचारिक और रणनीतिक टकराव दशकों तक प्रॉक्सी युद्धों के रूप में प्रकट हुआ, विशेष रूप से सीरिया, लेबनान और यमन में।
 इस साल के मध्य में यह तनाव प्रत्यक्ष सैन्य टकराव में बदल गया है। जून 2024 में इजरायल द्वारा ईरान के महत्वपूर्ण ऊर्जा बुनियादी ढांचे पर हमले और जून 2025 में एक ईरानी टेलीविजन भवन पर हमले ने इस संघर्ष को नए स्तर पर पहुंचा दिया। ईरान ने जवाबी कार्रवाई में मिसाइल हमले किए,ईरान ने इजरायल पर क्लस्टर मिसाइल से भी अटैक किया। हालांकि इजरायल का आयरन डोम और अन्य रक्षा तंत्र इनमें से अधिकांश हमलों को नाकाम करने में सफल रहे,लेकिन पूरी तरह से वह इसे नहीं रोक पाये। इन हमलों ने दोनों देशों की सैन्य क्षमताओं और कमजोरियों को उजागर किया। इजरायल की उन्नत तकनीक और सटीक हमले करने की क्षमता ने ईरान के हवाई रक्षा तंत्र की अपर्याप्तता को सामने ला दिया, जबकि ईरान की लंबी दूरी की मिसाइलों ने इजरायल के लिए एक गंभीर खतरा प्रस्तुत किया।

दोनों देश के बीच छिड़े इस संघर्ष का एक प्रमुख कारक ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी है। इजरायल  बार-बार दावा कर रहा  है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में अग्रसर है, जो उसके अस्तित्व के लिये खतरा है। 2015 के परमाणु समझौते के पतन के बाद, विशेष रूप से 2018 में अमेरिका के इससे बाहर निकलने के बाद, ईरान ने यूरेनियम संवर्धन को तेज कर दिया। 2025 तक, कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की दहलीज पर पहुंच चुका है, हालांकि यह दावा विवादास्पद और असत्यापित है। इजरायल ने इस खतरे को कम करने के लिए साइबर हमले (जैसे स्टक्सनेट) और लक्षित हत्याओं का सहारा लिया, जिसने ईरान को और अधिक आक्रामक रुख अपनाने के लिए प्रेरित किया।

उधर, क्षेत्रीय गठबंधन और वैश्विक शक्तियों की भूमिका इस संघर्ष को और जटिल बनाती है। इजरायल को अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों का समर्थन प्राप्त है, जो अब्राहम समझौते के बाद और मजबूत हुआ है। दूसरी ओर, ईरान ने रूस, चीन और अपने प्रॉक्सी समूहों जैसे हिज़्बुल्लाह और हौथी विद्रोहियों के साथ गठबंधन बनाए रखा है। हालांकि, रूस और चीन की प्रत्यक्ष सैन्य सहायता सीमित रही है, क्योंकि रूस यूक्रेन युद्ध में उलझा है और चीन क्षेत्रीय संघर्ष में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से बचता है। भारत जैसे देश, जो दोनों देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंध रखते हैं, तटस्थ रुख अपनाए हुए हैं, जो उनकी ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता की चिंताओं को दर्शाता है।

ईरान के परमाणु बम से इत्तर बात कि जाये तो आर्थिक और सामाजिक प्रभाव भी इस युद्ध का एक महत्वपूर्ण पहलू हैं। ईरान, पहले से ही प्रतिबंधों और आर्थिक संकट से जूझ रहा है, इजरायल के हमलों से और कमजोर हुआ है। ऊर्जा बुनियादी ढांचे पर हमले ने तेल उत्पादन और निर्यात को प्रभावित किया, जिससे ईरान की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव पड़ा। दूसरी ओर, इजरायल की अर्थव्यवस्था, जो तकनीक और नवाचार पर आधारित है, इस युद्ध के बावजूद अपेक्षाकृत स्थिर रही, हालांकि निरंतर युद्ध ने सामाजिक तनाव को बढ़ाया है। दोनों देशों में जनता युद्ध की थकान और अनिश्चितता से जूझ रही है, जिसने आंतरिक असंतोष को जन्म दिया है।

इस संघर्ष के संभावित परिणाम कई दिशाओं में जा सकते हैं। सबसे खतरनाक परिदृश्य एक पूर्ण युद्ध है, जिसमें परमाणु हथियारों का उपयोग शामिल हो सकता है। कुछ स्रोतों के अनुसार, अमेरिका में 2025 के अंत तक परमाणु हमले की संभावना पर सट्टेबाजी हो रही है, जो इस खतरे की गंभीरता को दर्शाता है। दूसरी ओर, कूटनीतिक हस्तक्षेप, विशेष रूप से तटस्थ मध्यस्थों जैसे संयुक्त राष्ट्र या क्षेत्रीय शक्तियों के माध्यम से, युद्ध को सीमित कर सकता है। हालांकि, दोनों देशों के नेतृत्व की कठोर रवैया और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता इसे मुश्किल बनाती है।

वैश्विक प्रभाव की दृष्टि से, यह युद्ध तेल की कीमतों में उछाल, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और शरणार्थी संकट को जन्म दे सकता है। मध्य पूर्व पहले से ही अस्थिर है, और इस युद्ध ने सीरिया, लेबनान और यमन जैसे देशों में प्रॉक्सी संघर्षों को और भड़का दिया है। इसके अलावा, यह युद्ध वैश्विक शक्तियों के बीच ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है, जिसमें अमेरिका और उसके सहयोगी एक तरफ और रूस-चीन गठबंधन दूसरी तरफ खड़े हों।
कुल मिलाकर ईरान-इजरायल युद्ध 2025 में एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है, जिसमें ऐतिहासिक शत्रुता, परमाणु महत्वाकांक्षाएं, क्षेत्रीय गठबंधन और वैश्विक हस्तक्षेप शामिल हैं। यह संघर्ष न केवल मध्य पूर्व, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए एक गंभीर चुनौती है। इसके समाधान के लिए कूटनीति, संयम और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में यह एक दूर की कौड़ी प्रतीत होता है। इस युद्ध का भविष्य अनिश्चित है, और इसके परिणाम न केवल दोनों देशों, बल्कि पूरे विश्व के लिए निर्णायक होंगे।

संजय सक्सेना

संजय सक्सेना

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