राम उठो- कृष्ण उठो
आदमी आदमी नहीं रहा
बहुत जहरीला हो गया है ।
रावण- कंस दिनदहाड़े करते अट्टहास …
राम-कृष्ण बैठे मंदिरों में
उचित समय की प्रतीक्षा में,
दुनिया बहुत जहरीली हो गई है ।
राम उठो, कृष्ण उठो
धनुष -चक्र चलाने का समय है
मानवता बचानी है
तो मर्यादा तोड़नी होगी
शायद बंसी तभी मधुर लगेगी
धरा के आंसुओं को पोंछने का समय है ।
हे राम ! हे कृष्ण !
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा