26 जून 1975 का वह काला दिन
स्वतंत्र भारतवर्ष में 26 जून 1975 का दिन भारतीय इतिहास में काला दिन के रूप में अंकित है, इसी दिन भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारतीय लोकतन्त्र की धज्जियां उड़ाते हुए आपातकाल की घोषणा की थी, आज के 50 वर्ष पूर्व कांग्रेस सरकार द्वारा लगाया गया आपातकाल लोगों के लिए साक्षात काल के समान था यह आपातकाल करोड़ों भारतीयों के मौलिक अधिकारों को कुचलने का दुष्चक्र था उस समय पर जिन लोगों ने इस आपातकाल को झेला था उसके काले अध्याय आज भी उनके सामने आ जाते हैं। आज जो कांग्रेस लोकतन्त्र, संविधान की दुहाई देती फिरती है उसी कांग्रेस ने लोकतन्त्र और संविधान को दरकिनार कर तानाशाही जैसा जघन्य अपराध कर भारतीय जनमानस को कालकोठरी में धकेलने का कुचक्र रचा था। उस समय कांग्रेस ने सभी नैतिक संस्थाओं को प्रतिबन्धित कर दिया था, 25 जून 1975 की स्याह रात, जब आपातकाल की घोषणा की गई, उस रात से ही पुलिस ने विरोधी दलों के नेताओं, बच्चों पर जो जुल्म किए, उन्हें याद कर लोकतंत्र सेनानी अब भी सिहर उठते हैं। जिन्होंने 21 महीने के आपातकाल में पुलिस के जुल्म झेले और जेल में यातनाएं सहीं। आज जो लोकतंत्र सेनानी अभी जीवित हैं उन्हें जेल में पिटाई और केवल सूखी रोटी मिलती थी। दिनभर प्यासा रखा जाता था कि मनोबल तोड़ा जा सके। देशभक्तों द्वारा होने वाली भारत माता की पूजा भी प्रतिबंधित कर दी गई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे देशभक्त संगठन को भी प्रतिबंधित कर दिया। इस आपतकाल का विरोध करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई काव्य शैली में लिखते हैं कि
अनुशासन के नाम पर, अनुशासन का खून
भंग कर दिया संघ को, कैसा चढ़ा जुनून
कैसा चढ़ा जुनून, मातृपूजा प्रतिबंधित
कुलटा करती केशव-कुल की कीर्ति कलंकित
यह कैदी कविराय तोड़ कानूनी कारा
गूंजेगा भारतमाता- की जय का नारा।
आपातकाल लगाने के बाद दमन ऐसा कि सारे मीडिया संस्थान बंद कर दिए गए, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को भंग कर दिया गया, सभा करना प्रतिबंधित कर दिया गया, पुरुष नशबंदी जैसे अमानवीय आदेश पारित किया गया, यहां तक कि शवयात्रा में जाने वाले लोगों से भी पुलिस रूखा व्यवहार कर पूछताछ करती थी, वास्तव में 26 जून से लगा यह आपातकाल संविधान की हत्या था। आपातकाल के दौरान जबरन नसबंदी की घटनाओं में तेजी आने के बाद मांएं अपने छोटे-छोटे बच्चों तक को कपड़े पहनाकर रखतीं। यहीं नहीं, कई बार तो उन्हें घर में ही छिपाकर रखती थीं। अकेले वर्ष 1976 में ही पूरे देश में 80 लाख लोगों की नसबंदी की गई, जिसमें अधिकांश पुरुष थे। ज्यादातर लोगों की नसबंदी उनकी इच्छा के बिना ही की गई। यहां तक, कई ऐसे युवकों की नसबंदी कर दी गई, जिनकी शादी तक नहीं हुई थी। इस आपतकाल के दौरान सरकार ने कई बार संविधान में बदलाव किए जिसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनावों को न्यायालयों की जांच से परे रखना तथा संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़ना शामिल था। आपातकाल के दौरान संसद के संक्षिप्त सत्र आयोजित किए गए। कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत था और विपक्ष के कई नेता जेल में थे इसलिए कई अध्यादेशों को कानून बनाने के लिए आसानी से संसद से मंजूरी मिल जाती थी। हालांकि, बाद में अगली सरकार ने इन्हें निरस्त कर दिया। जिन लोगों ने इसको देखा और झेला वह आज भी उस दौर को नहीं भूल सके हैं। कांग्रेस के लिए भले ही यह कोई नया कीर्तिमान रहा होगा लेकिन दूसरों के लिए यह किसी बुरे सपने जैसा ही था, जिसमें संविधान की आड़ में तानाशाही की जा रही थी। कांग्रेस को आपातकाल के लिए देश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। कांग्रेस को इसे लेकर पछतावा होना चाहिए, लेकिन कांग्रेस ने कभी भी इसके लिए माफी नहीं मांगी। अब जब देश में आपतकाल लागू हुए 50 साल होने जा रहे हैं, तो ऐसे में कांग्रेस पार्टी को सार्वजनिक रूप से इस पर पछतावा होना चाहिए और सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
— बाल भास्कर मिश्र