यज्ञ विषयक कुछ प्रश्न और उनके समाधान
इस अति संक्षिप्त लेख में ईश्वर वा यज्ञ सम्बन्धी कुछ प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं, जो एक पाठक ने हमसे किये हैं। समाधान इस प्रकार से हैं :
- ईश्वर ने ही इस संसार को बनाया है और वह एक कल्प अर्थात ४ अरब ३२ करोड़ वर्ष के लिए इसे चला कर इसकी प्रलय करता है, न पहले और न बाद में।
- हम ईश्वर के हाथ का केवल खिलौना है और कुछ नहीं कर सकते, यह कहना या मानना ठीक नहीं है। हम अर्थात जीवात्मा कर्म करने में स्वतंत्र एवं फल भोगने में ईश्वर की व्यवस्था में परतंत्र हैं। हम यदि प्रयास करें तो सद्कर्मो के द्वारा दुखों से निवृत होकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
- जिस ईश्वर ने हमें बनाया वह इस संसार के माध्यम से हमें अपना प्रत्यक्ष करा रहा है। इस संसार का एक एक पदार्थ वा कण-कण कह रहा है कि मुझे परमात्मा ने बनाया है।
- अग्नि में गोघृत आदि आहुति देने से वह सूक्ष्म होकर हमें अनेकानेक लाभ पहुंचाती है। सबको पाप से बचने में लिए प्रतिदिन हवन अवश्य करना चाहिए।
- पाठक ने लिखा कि कमरे में हवन करने से उनका दम घुटता है। हमने भी अपने कमरे में हवन करते हैं परन्तु हमारा दम कभी नहीं घुटा। पाठक जी के दम घुटने के कारण कुछ और हो सकते हैं। वह स्वयं आत्मनिरीक्षण कर इसका कारण जान सकते हैं।
- हवन करते समय हवन की अग्नि प्रज्वल्लित व प्रचंड होनी चाहिए। धुवाँ नहीं होना चाहिए। कमरे की सभी खिड़कियां वा रोशनदान पूरे खुले होने चाहियें। घी से हवन करने से यह अत्यंत सूक्ष्म हो जाता है और वायु में फैल कर वायु के दोषों को दूर करता है और परिवर्तित वायु को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बनाता है।
- अग्नि जलने से आक्सीजन की कार्बन डाइऑक्साइड बनती है, इस लिए यज्ञ नहीं करना चाहिए? इस प्रश्न का हमारा उत्तर है कि क्या कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनने के कारण हमने अग्नि में भोजन पकाना वा अन्य कार्य जिनमे अग्नि का प्रयोग होता है, करना छोड़ दिया है? यदि नहीं तो फिर इसे हवन पर ही क्यों लागू करें? अन्य सभी सभी कार्यों पर लागू करें।
उपर्युक्त पंक्तियों से यज्ञ से सम्बंधित कुछ सामान्य प्रश्नों का समाधान हो सकता है।
– मनमोहन कुमार आर्य
मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ. मैंने यज्ञ के अनेक लाभों को स्वयं अनुभव किया है. शंका उठाने वाले सज्जन की मंशा पर मुझे संदेह है.
एक बार मेरा एक्सीडेंट हुआ। ऐसे एक्सीडेंट में बचना असंभव था। मुझे खरोच तक नहीं आई। अगले दिन ऑफिस पहुंचा तो यह समाचार मेरे कार्यालय के एक वरिष्ठ मित्र श्री सुरेन्द्र रावत तक पहुँच चुका था। वह दरवाजे पर खड़े थे। बोले कि क्या कल आपका एक्सीडेंट हुआ था? मेरे हाँ कहने पर बोले कि पता है की आप बच क्यों गए? मेरे न कहने पर बोले कि इसलिए कि आप यज्ञ करते वा कराते हो। वह सज्जन देहरादून के प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाडी थे परन्तु मदिरां की उन्हें लत लग गई थी। आज भी वह जीवित हैं। मुझे उनका यह उत्तर शत प्रतिशत ठीक लगा। उनका कहा गया विचार तब तक मेरे मन में नहीं आया था। यज्ञ से मुझे भी अनेकानेक लाभ हुए हैं। शास्त्रों में कहा गया है “स्वर्गकामात यजेत” अर्थात यज्ञ करने से स्वर्ग वा सुखों की प्राप्ति होती है। हार्दिक धन्यवाद।