सामाजिक

परिवर्तन प्रबंधन

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस नश्वर संसार में हर स्थिति में परिवर्तन होता है। स्थायी कुछ भी नहीं है। स्थिति हमेशा एक सी नहीं रहती। हर पल हर क्षण बदलाव होता है। हम हर दिन एक दिन बड़े होते चले जाते हैं। समय गतिमान है। सुख भी स्थायी नहीं, दुःख भी नहीं। परिवार रिश्ते, समाज, संस्थान, हर जगह परिवर्तन होता रहता है। परिवार में एक वृद्ध की मृत्यु होती है। एक शिशु का जन्म होता है। संस्थान में कुछ व्यक्ति सेवानिवृत्त हो जाते हैं। कुछ नए कर्मचारियों की भरती होती है। परिवर्तन होगा ही। इस नियम को स्वीकार करना होगा।

आइये परिवर्तन प्रबंधन (Change Management) हेतु कुछ नियमों पर विचार करें।

प्रतिस्पर्धा वाले युग में हर संस्थान को डिज़ाइन, उत्पाद, सेवा में लगातार परिवर्तन करते रहना होगा। पुरानी मशीनों के स्थान पर नई डिज़ाइन वाली, ईधन, बिजली, पानी, ऊर्जा बचाने वाली, ग्राहक की आवश्यकतानुसार नए फीचर्स वाले उत्पाद कम समय में कम मूल्य पर तैयार करने वाली मशीनें लानी होंगी। कर्मचारियों को नई तकनीकी एवं वैज्ञानिक जानकारी का प्रशिक्षण देना होगा। गुणवत्ता, सुरक्षा, संरक्षा, पर्यावरण संरक्षण का महत्व समझाना होगा। परिवर्तन को शीघ्र स्वीकार नहीं किया जाता। क्यों ? का प्रश्न उठता है। परिवर्तन की क्रिया धीरे-धीरे होती है। नियमों, कानूनों में बदलाव स्वीकारने में समय लगता है। सकारात्मक परिवर्तन आवश्यक हैं प्रगति, उत्थान, उत्पादकता, सफलता, सार्थकता हेतु। किसी भी टीम में पुराने अनुभवी कर्मचारी के साथ नवनियुक्त कर्मचारी भी रखे जाने चाहिऐं। ज्ञान अनुभव के साथ शिक्षा का मिश्रण धनात्मक परिवर्तन लाएगा। अनुसंधान विकास मंजिल नहीं यात्रा हैं। हम अपने घर परिवार, समाज और संस्थान, हर स्थान पर एक स्पष्ट परिवर्तन महसूस करते हैं। 15-20 वर्षों पूर्व एवं आज के उत्पादों में, सुविधाओं में, सेवाओं में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। अब बैंक में कैशियर के सामने लाइन लगाने की आवश्यकता नहीं। ए.टी.एम. कार्ड से रात को दो बजे भी बेंक एकाउंट से पैसे निकाले जा सकते हैं। प्लास्टिक के कारण समस्याऐं बढ़ी हें, पर दिनों दिन वाले व्यवहार में जनसाधारण को सुविधाऐं भी मिली हैं। दीपावली की शाम को मिट्टी के दीपक के साथ बल्ब की सीरीज भी रोशनी हेतु लगाई जाती है।

परिवर्तन थोपा नहीं जाना चाहिए। परिवर्तन के लिए एक वातावरण बनाना चाहिए। सिस्टम में परिवर्तन हेतु प्रशिक्षण के माध्यम से जानकारी दी जानी चाहिए। परिवर्तन के नकारात्मक एवं सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा की जानी चाहिएं परिवर्तन स्वीकार करने हेतु व्यक्तियों को तैयार किया जाना चाहिए। ताकि वे उसे स्वीकार कर सकें। स्पष्टवादिता, पारदर्शिता, ईमानदारी होनी चाहिए। परिवर्तन व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक जीवन के हर पहलू हर पक्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेंडलाइन फोन की अपेक्षा मोबाइल फोन के अनेक लाभ हैं, पर बेसिक लेंडलाइन फोन के अभी भी कई फायदे हैं, मोबाइल फोन के दुरूप्योग से हो रहे दुष्परिणामों से हम सभी अवगत हैं। फेसबुक ने हमें पुराने भूले हुए मित्रों-रिश्तों के सूखते पेड़ में पानी देकर उन्हें पुनर्जीवित भी किया है, परन्तु फेसबुक से कई अवांछनीय समस्याऐं भी उभर कर आई हैं।

संस्थान में परिवर्तन हेतु शीर्ष अधिकारियों को पहल करनी होगी। परिवार में परिवर्तन हेतु परिवार के मुखिया को पहल करनी होगी। हम चाहते है कि बच्चे कम्प्यूटर-टी.वी. पर कम रहें एवं कुछ समय अच्छी ज्ञानवर्धक मनोरंजक प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व विकास वाली पुस्तकें भी पढे़, तो हमें भी पहले वैसा ही करके दिखाना होगा। बच्चों की घरेलू लाइब्रेरी से पूर्व बड़ों की भी लाइब्रेरी घर में होनी चाहिए। संस्थान के कर्मचारी की ड्रेस है, तो संस्थान के शीर्ष अधिकारी को भी उसी ड्रेस में आना होगा। बच्चों को स्कूल ड्रेस में आना है ही, तो टीचर्स के लिए भी ड्रेस कोड होना चाहिए। परिवार, समाज, संस्थान के सदस्य नियमित अंतराल से मिलकर परिवर्तन लाने हेतु विचार-चिन्तन, मनन, मंथन करें। प्रबंधन के लिए परिवर्तन, सकारात्मक का पर्यायवाची है। मीटिंग संक्षिप्त व टू दी प्वाइन्ट हों, इसके लिए मीटिंग के संचालन में परिवर्तन लाने होंगे।

परिवर्तन होकर रहेगा। हमें मानसिक शारीरिक रूप से बदलाव को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना होगा। घबराने, डरने, अस्वीकार करने से समस्याऐं सुलझेंगी नहीं। प्रकृति परिवर्तनशील है। व्यक्तिगत स्तर पर भी परिवर्तन से स्वतः ही भरोसा, विश्वास, श्रद्धा, आस्था मिलती चली जाएगी। इति।

दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी

One thought on “परिवर्तन प्रबंधन

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा, शिक्षाप्रद और उपयोगी लेख !

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