लघुकथा : श्रेष्ठ कौन
वृक्ष पर बरसते पानी ने पेड़ से कहा,” मेरी बिना कोई जिन्दा नहीं रह सकता है इसलिए मैं तुम से श्रेष्ठ हूँ.”
वृक्ष ने प्रतिवाद किया ,” मेरे कारण हवा चलती है. मैं वाष्पन न करू तो पानी भाप बन कर न उड़े. तब न बादल बने और न हवा चले . यानि मेरे ही कारण ही पानी बरसता है और हवा चलती है ..”
हवा कब पीछे रहती,” नहीं-नहीं. तुम दोनों से मैं श्रेष्ठ हूँ. मेरे कारण ही पानी बरसता है. तुम भी मेरे ही कारण जीवित हो .” हवा का अपना तर्क था.
मगर न्यायाधीश चन्द्रमा किसी के तर्क से सहमत नहीं था,”श्रेष्ठता उस की उपयोगिता के साथ-साथ उपयुकत्ता की मंशा की वजह से सिद्ध होती है . चूँकि तुम सब उपयोगी है. एकदूसरे से जुड़े हुए हो.मगर एकदूसरे से श्रेष्ठ नहीं हो.”
” फिर , श्रेष्ठ कौन है ?” हवा ने पूछा .
” सब से श्रेष्ठ पृथ्वी है ,” चन्द्रमा ने कहा ,” वह पेड़ को पोषण देती है. वही हवा को पालती-पोषती है.पानी को अपनी गोद में समाये रहती है . यानि वह सभी को देती ही देती है . इसलिए हम सब में वही श्रेष्ठ है .”
यह सुन कर ‘सूर्य’ हौले से मुस्करा दिया.
— ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
उत्तम लघुकथा।