लघुकथा -बुनियाद
बेटे ने घर में कदम रख ही था कि माँ ने कहा ,“ बेटा ! इस से पूछ . आज यह पराये मर्द के साथ मोटर साइकिल पर बैठ कर कहाँ गई थी ?”
“ मांजी ! ये ऑफिस से थके हुए आए है इन्हें चाय पीने दो . फिर आराम से बात करते है .”
“ क्यों ? अपनी बात छुपाना चाहती है . दूसरों के साथ मोटर साइकिल पर जाती है . लोग क्या कहेंगे ?”
“ मांजी ! ऐसी कोई बात नहीं है . आप बाजार गई थी. इसलिए आप को बता नहीं पाई. इन का फोन बंद था.”
पति सास-बहु के विवाद से परेशान हो गया था जिस से उस के विश्वास की बुनियाद भी हिलने लगी थी , “ बता क्यों नहीं देती, कहाँ गई थी ? ताकि विवाद थम जाए.”
“ तो सुनो. वह पराया आदमी आप की माँ के फूफाजी का लड़का व मेरी मौसी की लड़की का पति था. उन की पत्नी को सड़क दुर्घटना में चोट लगी थी. यदि मैं वक़्त पर अस्पताल खून देने नहीं पहुचती तो वो भी आप के पिता और मांजी, आप के पति की तरह दुनिया से जा चुकी होती .”
बहुत अच्छी लघुकथा !