जज की कलम
सत्यमेव जयते के फिसल गये कदम
कर न सकी न्याय आज जज की कलम
न्यायमूर्ति ही कर दिये न्यायालय से गद्दारी
सच के आगे झूठ का ही पलड़ा पड़ गया भारी
गीता पर हाथ रख दूसरों को खिलाते हैं कसम
कर न सकी न्याय आज जज की कलम
सबूत मिटा के घूम रहे हैं अपराधों के सरदार
साजिश करके निर्दोषों को दे दिया कारागार
ये देखकर भारत माँ की आँखें हो गयी नम
कर न सकी न्याय आज जज की कलम
कानून तो अमिरों की बन गयी है गुलाम
झूठ पथ पर चलनेवाला पा लिया मकाम
सच्चाई ने तो रास्ते में ही तोड़ दिया है दम
कर न सकी न्याय आज जज की कलम
अदालत तो आज खुद ही बंधी है जंजीर से
कैसे वह निकालेगी सत्य को तीमिर से
आँखों पर पट्टी बाँध ली मारे लाज-शरम
कर न सकी न्याय आज जज की कलम
-दीपिका कुमारी दीप्ति
धन्यवाद !
बहुत सुन्दर !