कविता
आजकल का ज़माना बहुत गुर्बत में है
“मंजु”दो मीठे लफ्ज़ भी नही उसके पास
बड़ी मुद्दत से हम राह तकते रहे
मुहब्बत तू आती पर
कतरा कर चली जाती हमसे
वफा नही कर सकती तो
जफा भी न कर हमसे
“मंजू” हम इतने बुरे भी नही
तू अपने को हमसे खफा भी न कर
मंजुला रिशी
लंदन
बहुत खूब .
बहुत अच्छी कविता !!