शब्द हार जाते हैं
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
मूक है वाणी
कि न पार पाते है
शब्द हार जाते हैं,
जब तुम्हारा
नभ-जैसा निर्मल
हम प्यार पाते हैं।
2
जन्मों की यात्रा-
कि साथ रही होंगी
सुधियाँ मधु-भरीं,
आज के दिन
कौन से पुण्य पाए
हमे पास ले आए ।
3
नैनों का जल
सागर –सा अतल
अमृत भरे हुए,
जिसने जाना
निकला वो अपना
नहीं था वो बेगाना ।
4
घट रीतेगा
समय भी बीतेगा,
न रीते नेह-सिन्धु,
ये रात-दिन
बढ़ता ही जाएगा
गहराई पाएगा।
5
पुण्यों की कोई
तो बात रही होगी
कि राहें मिल गईं,
जागे वसन्त
पाटल अधर पे
ॠचाएँ खिल गईं।
6
आग की नदी
युग बहाता रहा
झुलस गया प्यार,
वाणी की वर्षा
सबने की मिलके
हरित हुई धरा ।
7
आएँगे लोग
उठे हुए महल
गिरा जाएँगे लोग,
शब्दों का रस
हार नहीं पाएगा
प्रेम-गीत गाएगा
8
सिर्फ़ दो बोल
जो मन को सींचते
वे सबको खींचते,
नील नभ में
कुछ भी विलीन हो,
वे ही रह जाएँगे ।
9
सोया हुआ जो
मन के द्वारे आके
जगा देता है कोई,
जन्मों की नींद
रस- बाँसुरी बजा
भगा देता है कोई ।
10
प्रभु का लेखा
हमको चलाता है
नाच भी नचाता है
जब चाहता
मन्त्र बन मन में
ये उतर जाता है ।
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बहुत अच्छी क्षणिकाएं. साधुवाद !
शब्द हार जाते हैं …. bahut hi sundar bhavpurn rachna….