कविता

अंधविश्वास

अंधविश्वास के अंधकार में डूबा है समाज।
हमें मिलकर तमस मिटाने की जरुरत है आज।।

बिल्ली ने रास्ता काटा या किसी ने छिंक दिया,
अपने आगे बढ़ते कदमों को पिछे खींच लिया,
भूत-भगत, झाड़-फूँक में है इन्हें विश्वास।
हमें मिलकर तमस मिटाने की जरुरत है आज।।

विधवा बाँझ नारी को ये मानते हैं अश्पृश्य,
विकसित 21वीं शदी का भी ऐसा है दृश्य,
इनके रिति-रिवाज में भरा है अंधविश्वास।
हमें मिलकर तमस मिटाने की जरुरत है आज।।

ये खुशी माँगने जाते है बाबा के दरबार में,
अपनी कामयाबी मानते हैं बाबा से गोहार में,
वेद-पुराण,गीता-ग्रंथ की क्या जाने ये बात।
हमें मिलकर तमस मिटाने की जरुरत है आज।।

भगवान भरोसे जीते हैं करते नहीं अभ्यास,
भाग्य-नशीब मानते हैं खुद पर नहीं विश्वास,
ये धरती भी न समझे दुनिया छू लिया आकाश।
हमें मिलकर तमस मिटाने की जरुरत है आज।।

– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

3 thoughts on “अंधविश्वास

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अंधविश्वासों को दूर करने के लिए आज की युवा पीड़ी को कुछ करना होगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता, अच्छे विचार !

Comments are closed.