पिताजी सबसे बड़े शुभ-चिंतक
मेरे पिताजी एक साधारण किसान हैं। धैर्य, साहस, ईमानदारी और वात्सल्यता ही इनकी पहचान है। अपने खून-पसीने,स्नेह-प्यार से सिंच कर परिवार रुपी बगिया को हरा-भरा बनाये रखना ही इनका काम है। मेरे सभी भाई-बहनों को हैसियत से अधिक पढ़ाया और खासकर मुझे। मुझे पढ़ने में बहुत रुची है और इन्होने कभी भी मेरे पढ़ाई के बीच में अपनी गरिबी को नहीं आने दिया। मुझमें अभिलाषा जगने से पहले इन्होने उसे पूरी करने की कोशिश की। मुझे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। मैं तो कहूंगी कि पिता सबसे बड़ा मार्गदर्शक होता है। उनके द्वारा दिखाया गया राह सीधे मंजिल तक जाती है। वे मुझसे कितना प्यार करते हैं इसका अंदाजा मैं भी नहीं लगा सकती हूँ। इनके प्यार को मापने के लिए शायद पूरा आसमान भी कम पड़ जायेगा।
ऐसे में मैं पितृ दिवस (फादर्स डे) के अवसर पर साल में बस एक दिन इनके नाम करुं क्या ये उचित है ? नहीं मेरे लिए तो हर दिन फादर्स डे के समान है। साल के 365 दिन के एक-एक पल इनके नाम है। पिता जी की हर बातें मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी कुछ बातें अविस्मरणीय है जो मुझे अपने मंजिल पथ में आगे बढ़ने में सहायता करती है।
बात तब की है जब मैं दशम् वर्ग में पढ़ती थी। स्कूल की ओर से पर्यटन स्थल पर जाना था। दशम् वर्ग स्कूल जीवन का अंतिम वर्ष होता है। इसके बाद सभी प्रिय साथी अलग-अलग हो जाते हैं। ऐसे में पर्यटन पर जाने की खबर अनंत खुशियाँ लेकर आयी। सहेलियों के साथ बिताये पल को यादगार बनाने के लिए इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था ? हम सभी साथी बहुत खुश थे। लेकिन मेरे खुशियों के बीच एक द्वंद्व की दीवार खड़ी थी कि पता नहीं कि पिताजी जाने के लिए इजाजत देंगे या नहीं।
पर्यटन पर जाने से पहले मंजूरी पत्र पर विद्यार्थी के अभिभावक की हस्ताक्षर की जरुरत होती थी। सभी के अभिभावक स्कूल में आये थे। मेरे पिताजी भी आये
थे , इसलिए कि मेरा छोटा भाई सुधीर भी उसी स्कुल में नवम् वर्ग में पढ़ता था। वह पिताजी को बुलाकर स्कूल में लाया था। हालांकि वह मुझसे पूछा था कि पिताजी से आपके लिए भी हस्ताक्षर के लिए कह देता हूँ, लेकिन मैंने ही उसे ऐसा करने से मना कर दिया। मुझे डर था कि पिताजी इस वजह से कहीं गुस्से में मुझे डाँट न दें। मैं अपने पिताजी के गुस्से से
बहुत डरती हूँ। और ये भी सच है कि पिताजी ने मुझे आजतक डाँटा नहीं है। और मेरी भी हमेशा ये कोशिश रहती है कि मैं उन्हें डाँटने का कोई वजह न दूं।
शाम को खाना खाते समय वे मुझसे बोले- “तुमने पर्यटन पर जाने के लिए क्यों नहीं कहा ? माना कि हम वहाँ कभी भी घुम सकते हैं लेकिन अपने साथियों के साथ ऐसे घुमने का मौका शायद ही कभी मिलता है। अगर तुम जाने के लिए कहती तो मैं तुम्हारे लिए भी हस्ताक्षर कर देता। परीक्षा की तैयारी की वजह से तुम नहीं जाना चाहती तो कोई बात नहीं। ये भी जरुरी है। ”
पिताजी की इन बातों से मुझे खुशी का ठिकाना न रहा। जिनसे मैं डर रही थी वे खुद जाने के लिए मुझसे कह रहे थे इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती थी। मैं उनसे बोली- ” नहीं पिताजी, बस एक दिन की तो यात्रा है इससे
परीक्षा की तैयारी पर क्या असर पड़ेगा ? वैसे भी मेरी सभी सहेलियाँ जा रही ौहै। ”
मेरे पिताजी बोले- “अरे तो तुम मेरे डर से अपनी इस इच्छा को दबा रही थी ? अरे पर्यटन भी एक शिक्षा का अंग है। ऐसिहासिक और प्राकृतिक बस्तुओं को साक्षात देखने से ज्ञान बढ़ती है। बेटी, मैं तुम्हारे उगते पंख को कतरना नहीं चाहता हूँ। तुम्हारे अरमानों को मैं पिंजड़े में बंद नहीं कर सकता। मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटी आकाश की ऊँचाईयों को छू सके। मैं कल जाकर मंजूरी पत्र पर हस्ताक्षर कर दूंगा। साथ में सुधीर भी तो जा रहा है फिर डर किस बात की ? और वैसे भी स्कुल के सभी शिक्षक तो जान पहचान के ही हैं।”
मुझे तो खुशी इतनी मिली कि सारी रात सो न सकी। अगले दिन 7 दिसम्बर 2007 को अपनी जरुरी समान जैसे -खाना, पानी, कपड़ा, कैमरा, मोबाइल आदि लेकर निकल पड़ी अपने जीवन के अविस्मरणीय यात्रा पर।
मेरे पिताजी का आशिर्वाद हमेशा मेरे सर पर रहा है तभी तो मैं हर परीक्षा में अच्छी अंक प्राप्त की हूँ। परीक्षा में जाते समय मेरे पिताजी हमेशा ये बात समझाते हैं कि जिस प्रकार क्रिकेट खेल में एक-एक रन महत्व रखता है वैसे ही परीक्षा में एक-एक अंक का ध्यान रखना। निडर होकर पुरे ईमानदारी से परीक्षा देना। जब परीक्षा के परिणाम आते हैं तो मुझे बहुत
खुशी होती है, इसलिए नहीं कि मेरे अंक अच्छे आये बल्कि इसलिए कि मेरे परीक्षा के परिणाम से मेरे पिताजी को बहुत खुशी मिली।
मुझे याद है मैट्रीक का परिणाम। मेरे पिताजी
द्वार पर खड़े होकर हर पुछनेवाले को बड़े शान और खुशी से कहते थे कि मेरी बेटी पूरे गाँव में प्रथम आयी है। उस सत्र में मेरे गाँव के लगभग पचास विद्यार्थी परीक्षा में भाग लिये थे।मेरे पिताजी को सबसे ज्यादा खुशी मेरे आई.एस.सी. के परिणाम से मिला क्योंकि इस बार अंक मैट्रीक से भी अधिक आये थे। इतना अंक आस-पास के गाँव के किसी विद्यार्थी के इतने अंक नहीं आये थे। जेवार प्रथम मेरा परिणाम पाकर मेरे पिताजी तो फूले न समा रहे थे। सभी रिस्तेदारों को फोन करके बता रहे थे। उनकी खुशी देखते बनती थी।
मेरे पिताजी एक किसान हैं। किसान को अपने लहराते फसलों को देखकर जो खुशी मिलती है उससे क़ई गुणा अधिक खुशी उन्हें मेरे परिणाम को सुनकर हुआ। एक बेटी के लिए इससे अधिक खुशी और क्या हो सकती है कि वह अपने पिता के खुशी और शान का कारण बने। और मेरे लिए ये सब संभव हुआ उनके आशिर्वाद से। मैं तो भगवान से बस यही कामना करती हूँ कि खुशी के साथ लम्बी उम्र दे ताकि उनका आशिर्वाद मुझपर हमेशा बना रहे और मैं अपने जीवन के हर परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकूं। मेरे लिए अपने पिताजी का परिचय देना सूर्य का दीपक दिखाना है। मैं बस इतना ही कह सकती हूँ कि वे मेरे हर कदम पर साथ देनेवाले राही हैं, मेरी जिंदगी के लिए मुझसे भी ज्यादा परवाह करनेवाले मेरे शुभचिंतक हैं। वे मेरा संसार हैं। उनका घर मेरे लिए स्वर्ग है। उनके पावन चरणों में मेरा चारो धाम है। और वे ही मेरे प्रथम पुज्य भगवान हैं।
– – दीपिका कुमारी दीप्ति (पटना)
बहुत अच्छा लिखा है।