शिशुगीत

शिशुगीत – 6

1. रबर

गलत लिखे को तुरंत मिटा दे
कॉपी मेरी रखता साफ
गुस्सा होने से ही पहले
टीचर कर देते हैं माफ

2. दूध

मम्मी बोले दूध पियो
लेकिन मुझे नहीं भाता
इधर-उधर जाकर घर में
मैं हरदम ही छिप जाता
मम्मी ढूँढ ही लेती है
बूस्ट मिलाकर देती है

3. बल्ब

कमरे में ये भरे उजाला
छोटा सूरज-चाँद निराला
रोज शाम को जलता है
जब-जब सूरज ढलता है

4. घड़ी

टेबलपर बैठी रहती
सबको समय बताती है
सुबह-सुबह ये बज-बजकर
मुझको रोज उठाती है

5. टॉर्च

जैसे ही बिजली जाती
हमसब टॉर्च जलाते हैं
कैंडिल, माचिस ढूँढते
डर को दूर भगाते हैं

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “शिशुगीत – 6

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छे शिशु गीत !

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