ग़ज़ल
आज हर शख्स क्यों बेवजह ही परेशान है
हँस रहे हैं सुमन सब मगर डाल वीरान है
लुट चुकी चाँदनी,चाँद भी हो गया सांवला,
ले रहे फूल सिसकी,भ्रमर का नहीं गान हैं
उड़ गयी हर महक, और बेला रही सूखती
क्या करे इस जिगर में उठा तेज तूफान है
धूप में जब नहाकर हुआ दिल जवां रात का
यूँ लगा सूर्य की उस छुहन में अभी जान है
सज्दा भी कर लिया और दीदार भी ना हुआ
पाकदिल इस अदा पर सभी जौक़ कुर्बान है
रामकिशोर उपाध्याय
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.
बढ़िया ग़ज़ल !