दो हिन्दी हाइबन
हाइबन क्या है ?
‘हाइबन’ जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘काव्य-गद्य ‘ हाइबन गद्य तथा काव्य का संयोजन है …. हाइबन की वार्ता सरल, मनोरंजक तथा बिम्बात्मक होती है। इस में आत्मकथा, लेख , लघुकथा या यात्रा का ज़िक्र आ सकता है और अंत में एक हाइकु भी।
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1 . भारी बुगची ( हाइबन )
काली स्याह अँधेरी रात ……….. फोन की घंटी ………..बेवक्ती अनहोनी। उसकी साँसे डूबने लगीं। कुछ ही पलों में उसका रंग धुएँ जैसा हो गया। उसकी सोच को जैसे लकवा मार गया हो। आँखों में झरना बने आँसू रोकने पर भी रुक नहीं रहे थे। कलमुँही अनहोनी ने कहर ढाह दिया था। उसकी ज़िन्दगी के रास्तों का हमसफ़र ……….. लम्बे सफ़र का साथ छोड़ ……….. किसी अज्ञात देस चला गया ……….. जहाँ से कभी कोई लौटकर नहीं आया। दिनों के महीने …….और ……..महीनों के साल बनते गए मगर उसके लौटने की इन्तज़ार कभी ख़त्म न हुई।
उसको ज़िंदगी एक खला लगने लगी। सूली टँगे पल पीछा करते हुए लगते। ज़िंदगी सूखी शाखा जैसे तिड़क गई। दुखों की आँधियों को झेलती ……रब से शिकवे करती वह टूट जाती,” उसका साथ तो अब एक सपना ही बन गया। रब ने पता नहीं किन कर्मों का बदला लिया मुझसे। बिलकुल भी रहम नहीं आया …. बूढ़े माँ -बाप की लाठी का सहारा न रहा। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ये ज़िंदगी इतनी मुश्किल भी हो सकती है। जब कभी किसी बूढ़े -जोड़े को एक साथ देखती हूँ…. लगता है यह लकीर तो मेरे हाथों पर रब शायद डालनी ही भूल गया। न जाने कैसे निकलेगी यह पहाड़ जैसी जिंदगी अकेले ?
बहुत मुश्किल होता है पाँव में शूलों का पनपना और इसकी पीड़ा को अपने दिल में समाना। उसको प्रतिदिन भीतर ही भीतर पिघलते देखती हूँ। मुझे कभी कुछ नहीं मिला उसके आश्वासन की सूनी झोली में डालने के लिए ….. मोह तथा अपनेपन की दिलासा के सिवाय ।शायद यही उसकी अँधेरी राहों में कभी रौशनी की लौ बन जाएँ।
भारी बुगची
कँकरीले ये रास्ते
जख्मी है पैर।
2 . सुर्ख गुलाब (हाइबन )
स्कूल ऑफ़ स्पेशल एजुकेशन -“चिल्ड्रन विथ स्पेशल नीड्स “… भीतर जाते ही मेरी सोच रुक- सी गई थी …. मैं तो जैसे निष्पन्द मूर्त्ति बन गई थी और भीतर तक काँप गई थी।
आधी छुट्टी का समय था। बच्चे स्कूल में बने अलग -अलग हिस्सों में खेल रहे थे ;जो बड़ी -बड़ी ग्रिल लगा कर बनाए हुए थे। एक भाग में कुछ बच्चे व्हील चेयर पर बैठे इधर उधर देख रहे थे। दूसरे हिस्सों में कोई बच्चा ऊँचे से चीख रहा था , कोई दीवार की तरफ मुँह करके छलाँगें लगा रहा था, कोई बेहताशा दौड़ रहा था,तो कोई ऐसे ही हाथ हिला -हिलाकर बिन शब्दों से अपने -आप से ही बातें कर रहा था। एक बच्चे मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी ओर खींचने लगा जैसे वह मुझे कुछ बताना चाह रहा हो।
मुझे विस्मित तथा भयभीत-सी देखकर स्कूल का एक कर्मचारी बताने लगा, ” ये बच्चे बोल नहीं सकते। अपने भावों को चिलाकर या आपका हाथ थाम कर प्रकट करते हैं। कुछ बच्चे मुँह द्वारा खा भी नहीं सकते। उनके पेट में लगी ट्यूब में सीधे ही भोजन डाला जाता है। बहुत से बच्चों को टट्टी -पेशाब का भी पता नहीं चलता। इस स्कूल में इन दिमागी तथा शारीरिक तौर से विकलांग बच्चों को खुद को सँभालने की ही ट्रेनिंग दी जाती है”
सुनकर मेरी आँखे नम हो गईं। मैं सोचने लगी कि जब किसी के घर में किसी बच्चे का जन्म होने वाला होता है ,तो हर दादी को पोते का इंतजार रहता है। उसने शायद ही कभी ये दुआ की हो कि हे प्रभु आने वाला बच्चा तंदरुस्त हो। मेरी सोच विकलांग बच्चों तथा इनके माता-पिता पर आ कर अटक गई –
चढ़ती लाली
पत्ती –पत्ती बिखरा
सुर्ख गुलाब।
डॉ हरदीप कौर सन्धु
विजय कुमार जी ,जगदीश सोनकर जी,नीलेश गुप्ता जी , धनंजय सिंह जी , सविता मिश्रा जी तथा डॉ ज्योत्स्ना शर्मा जी … सराहना एवं प्रोत्साहन देने का हार्दिक आभार !
हरदीप
स्वागत है, डॉ साहिबा.
बहुत सुन्दर सरस प्रस्तुति !
sundar
मैंने कभी हईबन का नाम नही सुना था. आज पढ़कर ख़ुशी हुई. धन्यवाद.
हाईबन अच्छे हैं.
गद्य काव्य कि यह शैली पसंद आई.
हाइबन विधा से पहली बार परिचय हुआ. इसका हिंदी में अधिक उपयोग होना चाहिए, क्योंकि यह हाइकु, तांका जैसी विधाओं कि तरह नीरस नहीं है, बल्कि इसमें अधिक सरसता है, जो काव्य में होना आवश्यक है.
आपके हाइबन अच्छे हैं. आपने इस विधा का अच्छा उपयोग किया है. हार्दिक बधाई !