महान होने का पराक्रम
आदमी है कि
स्वः की स्थापना हेतु
महान होने की प्रक्रिया में
उधृत करता है लगातार
और सामने वाले की चुप्पी से
कर देता है गौण उसे
मानो लगा है पत्थरों का बाजार,
पूजास्थल में स्थापित मूर्तियाँ
मौन की भाषा में
करती हैं अभिव्यक्त
और आदमी है कि
उसकी ख़ामोशी की सहन शक्ति का
लेता है इम्तिहान.
शब्दों का षडयंत्र रचता
महान होने की प्रक्रिया में
स्वयंभू की घोषणा करते
भूल जाता है
महान होने की प्रक्रिया है एक साधना
न कि शोर करते हुए
शब्दों को दुंदूभि की नोक पर रख
उल्लास से शोर को मंजिल मान लेना.
महान होने के लिए
मौन के आवर्त में अन्य को सुनना
ही पर्याय होना है.
मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियाँ
मौन के सिंहासन पर से
सुनती हैं सब कुछ
तभी तो सृष्टि में
मौन के आवरण में ढकी मूर्तियाँ पूजनीय हैं.
— अशोक आंद्रे