कविता

पाँव

पाँव थककर भी
चलना नहीं छोड़ते
जब तक वे
गंतव्य तक न पहुँच जाएँ …
थक जाने पर कुछ देर
राह में विश्राम कर
पुन: चल पड़ते हैं
अपने लक्ष्य की और …

जबकि
घोड़े के रथ पर सवार लोग
या फिर ईंधन से चलायमान
अत्याधुनिकतम गाड़ियों में बैठे लोग
बिना पहियों के
अगले पडाव तक नहीं पहुँच पाते …

मगर
पाँव सदियों से
यात्रा करते आये हैं
कई सभ्यताओं
और संस्कृतियों की दास्ताँ कहते !!!

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

One thought on “पाँव

  • महातम मिश्र

    वाह बहुत खूब श्रीमान जी, पाँव नहीं थकते ,,,,,,,,

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