कविता

विरासत

जानते हो यार
मैंने विरासत में क्या पाया है?
जहालत, मुफलिसी, बेरुख़ी
तृषकार, ईष्या, कुंठा आदि-आदि
शब्दों की निरंतर लम्बी होती सूची
जो भविष्य में–
एक विस्तृत / विशाल
शब्दकोष का स्थान ले शायद ?

तुम सोचते हो
सहानुभूति पाने को गढ़े हैं ये शब्द मैंने!
मगर नहीं दोस्त
ये वास्तविकता नहीं है
भोगा है मैंने इन्हें
एक अरसे से हृदय में उठे मुर्दा विचारों के
यातना शिविर में प्रताड़ना की तरह
तब कहीं पाया है इनके अर्थों में अहसास चाबुक-सा
और जुटा पाया हूँ साहस इन्हें गढ़ने का

कविता यूँ ही नहीं फूट पड़ती
जब तक ‘अंतर ‘ में किसी के
मरने का अहसास न हो
और सांसों में से लाश के सड़ने की सी
दुर्गन्ध न आ जाये–
तब तक कहाँ उतर पाती है
काग़ज़ पर कोई रचना ऐ दोस्त ?

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

2 thoughts on “विरासत

  • वैभव दुबे "विशेष"

    बेहतरीन ,सार्थक रचना

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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