स्त्री !
स्त्री !
तुम महान हो
अपने हर रूप में
तुम समर्पित हो
कभी माँ बन कर
कभी बेटी बन कर
कभी पत्नी
और कभी बहन
हर रूप में समर्पित !
पर तेरे वजूद पर
प्रश्नचिन्ह क्यों?
क्यों तुम्हारे रास्ते के कांटे
तुम्हारे अंकुरित होने से पहले ही
तुझे मसल देने की साज़िशे
तुम्हारे हर कदम के साथ
क्यों जुड़े हैं
इज्ज़तो के सवाल
क्यों रह गयी तुम बनकर
नुमाईश की वस्तु
क्यों विस्मृत कर दिया तुमने कि
तुम हो सकती हो
रानी लक्ष्मीबाई
और
मां चंडी भी
स्त्री
क्यों मंजूर हैं तुम्हे
बनकर रहना
बस महज़ एक जिस्म
और भोग की वस्तु
क्यों नही नजर आता तुझे
तेरी ही रूह का जलवा
क्यों नही कर सकती तुम
खोखले संस्कारों का कत्ल
पर रोज़ करती हो कत्ल
अपनी रूह का
जाग अब
जागने की जरूरत हैं
अपने वजूद को बचाने के लिए
तुझे खुद ही
तह करनी पडेगी
अपनी आजादी की दिशा….!!
***रितु शर्मा****