गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मिसरा ~~
ये पहली बार जाना है ग़ज़ल भी मुस्कुराती है ।

बहर ~~
1222 1222 1222 1222

काफ़िया ~~~ती
रदीफ़ ~~~~~है

दिखाई दे रहे थे साथ मेरे मुफलिसी में भी
तेरा बस साथ है तो जिंदगी ये मुस्कुराती है ।

मुहब्बत की गली में पाँव रखते हैं भरोसे से
भरोसा तोड़ के क्यों तू  मेरे नज़दीक आती है।

पराया क्यों हुआ अपने वतन से  दूर जाकर तू
बिलखते हैं तेरे माँ बाप जब यादें सताती हैं।

दुआ हो साथ गर माँ की, मुसीबत आ नहीं सकती
मुझे जन्नत लगे दुनिया, गले जब माँ लगाती है।

वफ़ा की राह में तो हर कदम कांटे ही कांटे हैं
तभी तो पाँव तू भी सोचकर आगे बढ़ाती है।

धर्म पाण्डेय