कविता : बूँदें…
आसमान की नई कहानी
धरती पर ले आतीं बूँदें
तपी ग्रीष्म में भाप बनीं वो
फिर बादल बन जाती बूँदें
श्वेत श्याम भूरे लहंगे
इधर उधर इतराती बूँदें
सखी सहेली बनकर रहतीं
आपस में बतियाती बूँदें
इधर उधर इतराती बूँदें
सखी सहेली बनकर रहतीं
आपस में बतियाती बूँदें
नई नई टोली जब जुटती
अपना बोझ बढाती बूँदें
थक जातीं जब बोझिल होकर
नभ में टिक ना पातीं बूँदें
अपना बोझ बढाती बूँदें
थक जातीं जब बोझिल होकर
नभ में टिक ना पातीं बूँदें
ताल तलैया पोखर भरतीं
कागज़ नाव तिराती बूँदें
रिमझिम रिमझिम बारिश करके
बच्चों संग नहाती बूँदें
कागज़ नाव तिराती बूँदें
रिमझिम रिमझिम बारिश करके
बच्चों संग नहाती बूँदें
सुन मल्हार राग आ जातीं
कजरी गीत सुनाती बूँदें
झूले पेंगें हरियाली में
गोरी के मन भाती बूँदें
कजरी गीत सुनाती बूँदें
झूले पेंगें हरियाली में
गोरी के मन भाती बूँदें
तृषित धरा की सोंधी खुशबू
गिरकर खूब उड़ाती बूँदें
विकल व्यथित वीरान हृदय में
आँसू बन बस जाती बूँदें
गिरकर खूब उड़ाती बूँदें
विकल व्यथित वीरान हृदय में
आँसू बन बस जाती बूँदें
गंगा की पावन लहरों में
गोद भराई पाती बूँदें
लहरों पर इठलाती गातीं
सागर में मिल जाती बूँदें
गोद भराई पाती बूँदें
लहरों पर इठलाती गातीं
सागर में मिल जाती बूँदें
ऊपर उठतीं नीचे गिरतीं
सिंधु में जा समाती बूँदेंं
स्वाति को सीप का साथ मिले
मोती बन रम जाती बूँदें
सिंधु में जा समाती बूँदेंं
स्वाति को सीप का साथ मिले
मोती बन रम जाती बूँदें
आती बूँदें जाती बूँदें
जीवन को कह जाती बूँदें
या तो लहरों में खो जाती
या मोती बन जाती बूँदे
जीवन को कह जाती बूँदें
या तो लहरों में खो जाती
या मोती बन जाती बूँदे
— ऋता शेखर ‘मधु’
बूंदों की पूरी गाथा कह डाली आपने,,, बहुत सुंदर रचना |
बहुत आभार शशि जी !
सुंदर कविता
बूँदें है तो जीवन है
बहुत आभार विभा जी !