गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

ये जीवन विधाता का उपहार है |
ये माने वही जो समझदार है |

बुलाती हैं गलियाँ मेरे देश की
विदेशी ये राहें कहाँ प्यार है |

बड़ा मोल अपनों का समझो इसे
निभाना सदा ही ये संसार है |

जगत के जो रस्ते हैं टेढ़े बने
न रखना सरोकार बेकार है |

सहज पथ ही चुनना गमन के लिए
सफर की घड़ी बस बची चार है |

मैं राही अकेला चला आ रहा
सँभालो विधाता ये मनुहार है |

मिले जब भी “छाया” ठहरना वहीं
समझ लो विधाता का आभार है |

“छाया”

छाया शुक्ला

छाया शुक्ला "छाया" प्रकाशित पुस्तक "छाया का उज़ास"