ग़ज़ल
ये जीवन विधाता का उपहार है |
ये माने वही जो समझदार है |
बुलाती हैं गलियाँ मेरे देश की
विदेशी ये राहें कहाँ प्यार है |
बड़ा मोल अपनों का समझो इसे
निभाना सदा ही ये संसार है |
जगत के जो रस्ते हैं टेढ़े बने
न रखना सरोकार बेकार है |
सहज पथ ही चुनना गमन के लिए
सफर की घड़ी बस बची चार है |
मैं राही अकेला चला आ रहा
सँभालो विधाता ये मनुहार है |
मिले जब भी “छाया” ठहरना वहीं
समझ लो विधाता का आभार है |
“छाया”