भाषा-साहित्य

न्यू मीडिया: मौजूद हैं चुनौतियां एवं संभावनायें

सूचना प्रौद्योगिकी के युग में न्यू मीडिया का विस्तार दिनोंदिन निरन्तर बढता जा रहा है, जिसके कारण इसके आयामों में भी वृद्धि हो रही हैं। न्यू मीडिया ने पारम्परिक संचार माध्यमों को पीछे छोड़कर उस पर अपना अधिकार पूर्णत भले ही न कर पाया हो‚ लेकिन अपनी जमीन भविष्य के लिए पुख्ता जरूर कर ली है।

न्यू मीडिया ने आज समाज में वेब मीडिया‚ ऑनलाइन मीडिया‚ साइबर जर्नलिज्म‚ सोशल मीडिया आदि नामों से अधिक पहचान और पकड़ बना ली है। मीडिया की इस विधा द्वारा हम कम्प्यूटर पर बैठकर पूरी दुनिया को जान सकते हैं व उससे जुड़ सकते हैं। हम अपने मोबाइल में मौजूद जीपीएस सिस्टम से यह भी जान सकते हैं कि हमें जहां जाना है‚ उसका रास्ता क्या है। न्यू मीडिया कई माध्यमों से हमारे सामने है‚ जैसे- टेक्स्ट‚ पिक्चर्स‚ आडियो‚ वीडियो आदि। यह सुविधा हमें 24×7 मौजूद है।

अभी न्यू मीडिया में एक और शब्द उभरकर सामने आया है‚ ‘विकीलीक्स’। इसने खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में वेब मीडिया का भरपूर उपयोग किया है और अपने कारनामों या खुलासों से पूरी दुनिया में हलचल पैदा कर रखी है। प्रिंट मीडिया में भी खोजी पत्रकारिता काफी मायने रखती है और कोई अच्छी खबर हुई तो एक्समक्लू सिव व लीड बनाया जाता है। यहां यह समझना होगा कि ये सारे परिवर्तन प्रिंट मीडिया से प्रभावित होकर तकनीकि माध्यम से अपने को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां भी प्रिंट मीडिया है‚ लेकिन अन्तर सिर्फ ‘स्क्रीन’ का है। प्रिंट में भी वेब मशीन है‚ न्यू मीडिया में वेब तकनीक के माध्यम से स्क्रीन पर आता है। दावा यह कि विकीलीक्स का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग किया गया और उसकी रिपोर्टों के खुलासे से पूरी दुनिया में हलचल मच गई।

आज न्यू मीडिया ने कई माध्यमों के द्वारा अपना विस्तार किया है, जिसके कारण इसमें दिनोंदिन गति भी आ रही है। भारत में न्यू मीडिया की शुरुआत हुये लगभग दो दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है‚ लेकिन अगर हम प्रिंट मीडिया की ओर गौर करें‚ तो उसमें भी तकनीकि विस्तार के साथ सार्थक बदलाव आए हैं। अब वे भी अपना स्वरूप बदल रहे हैं। उन्होंने अपने ‘लेआउट’ से लेकर अपने ‘कंटेन्ट,पिक्चर्स’ को भी बदला है और सामाजिक सरोकारों से जुड़ने की ओर तेजी से अग्रसर हुए हैं। सूचना के साथ-साथ ग्लैमर भी बढ़ा है। समाचार चैनलों पर समाचार देखने के बाद भी अखबार पढ़ने की आदत हमेशा रही है और रहेगी। उसने ‘विजुअल वैल्यू’ को भी तवज्जो दी है।

अभी तक संपादकीय पृष्ठ पर किसी भी प्रकार का कोई विजुअल नहीं दिखाई देता था‚ लेकिन अब अधिक मात्रा मे दिखाई दे रहा है। स्पष्ट है कि मिशन की जगह व्यवसायिकता ने ले ली है‚ यानि मिशन उद्योग में तब्दील हो गया है। उद्योग को नकारा नहीं जा सकता‚ लेकिन औद्योगिक वैश्विकता को लेकर तो बात हो ही सकती है। आज इसी वैश्वीकरण ने साहित्य‚ संस्कृति तथा अन्य विधाओं को नकार सा दिया है। हालांकि युवा पीढ़ी के कुछ हिस्से संस्कारवान हो सकते हैं लेकिन भविष्य को देखते हुए उन्हें भी समझौता करना पड़ रहा है। समय के अभाव में लोग फेसबुक‚ ट्विटर‚ व्हाट्सएप‚ ई-मेल‚ न्यूजसाइट्स जैसे अनेक तरीकों से खुद को लगातार अपडेट रखना चाहते हैं और इनपर लगातार सक्रिय रहना आज की मजबूरी भी है।

अच्छा है वैश्वीकरण के युग में युवा अपने भविष्य के प्रति चिंतित हैं‚ लेकिन भाषा कौन बताएगा‚ कहां से सीखेंगे भाषा? आज के युवा वर्ग को देखा जाये तो न ही हिंदी और न ही अंग्रेजी भाषा का सही व्याकरण ज्ञान है, ज्ञान है भी तो वही ‘हिंग्लिश’ भाषा का। क्या ‘एसएमएस’ की भाषा से वे आगे बढ़ पाएंगे? सीधे-सीधे कहा जाए तो युवा पीढ़ी भाषा और व्याकरण के मामले में कमजोर हुई है‚ क्योंकि मल्टीमीडिया के सारे आविष्कार हमारी भाषा में नहीं हुए हैं। भाषा के नाम पर कोई भी भाषा अपने मूल रूप में नहीं रह गई है। हमने अपनी भाषा खो दी है। कोई दिल्ली की हिन्दी कहता है‚ कोई ‘हिंग्लिश’ कहता है‚ तो कोई यह कहकर चुप कराने की कोशिश करता है कि ‘सब चलता है‚ बोलचाल की भाषा यही है।’ व्याकरण और उसकी तहजीब की बात नहीं करता है।

आज युवा पीढ़ी के लोग परिवार के साथ बैठकर खबरिया चैनलों को देखने की बजाय इंटरनेट पर न्यूज़पोर्टल से सूचना या आनलाइन समाचार देखना ज्यादा पसंद करते हैं। वहीँ अभी तक समाचार चैनलों पर किसी सूचना या खबर के निकल जाने पर उसके दोबारा आने की संभावना नहीं होती। लेकिन न्यू मीडिया के द्वारा अब ये समस्या भी ख़त्म हो गई है। जब और जहाँ चाहे किसी भी समाचार चैनल की वेबसाइट खोलकर पढ़ सकते है, साथ ही अब तो बहुत सारे समाचार चैनल अपनी साइट के द्वारा ऑनलाइन लाइव न्यूज़ को भी दिखाते हैं। अब तो समाचार पत्रों ने भी वेबसाइट बना रखी है‚ तो क्या समाचार पत्र अप्रासंगिक हो गए हैं? शायद नहीं‚ इसकी वजह समाचार पत्रों को बार-बार‚ कभी भी पढे़ जा सकने की खूबी है।

यहां प्रश्न यह भी पैदा होता है कि कितने फीसदी युवाओं के हाथ में इंटरनेटयुक्त मोबाइल है और कितने प्रतिशत युवा समाचारों में रूचि रखते हैं? हां यह सत्य है कि वेब पत्रकारिता में रोजगार के अवसर बढ़ेगे या बढ़ रहे हैं। छाटे-बड़े अधिकांश अखबारों ने अपनी वेबसाइट बना रखी है और पिछले दिनों के छूटे समाचारों को भी विस्तार से पढ़ा जा सकता है। लेकिन फिर वही प्रश्न‚ कितने लोग? प्रतिशत अभी नहीं बताया जा सकता और यह संभव भी नहीं। हम निराशावादी नहीं हैं‚ बल्कि हम आशा के प्रतिशत बृद्धि की बाट जोह रहे हैं। न्यू मीडिया‚ वेब मीडिया‚ सोशल मीडिया‚ विकीलीक्स‚ मोबाइल‚ मल्टीमीडिया सभी अपनी जगह पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं और हम निरन्तर दौड़ में आगे बढ़ रहे हैं

न्यू मीडिया की सशक्त मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता है। गावों में भी इसने अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी है‚ लेकिन गति धीमी है। साधन खरीदना आसान है‚ लेकिन उसके लिए संसाधनों की कमी अखरती है। यह नया आकाश नए आयाम को तो फैला रहा है‚ लेकिन अन्जाम तक कब पहुंचेगा‚ यह पता नहीं। कुल मिलाकर मीडिया ह्रास की सभी आलोचना कर रहे हैं।

जहां तक हम न्यू मीडिया की बात करते हैं‚ वह अपने नए स्वरूप में सामने आया है। न्यू मीडिया ने अरब देशों में हुई जनक्रान्ति को एक नई दिशा दी। आरूषि तलवार‚ दामिनी‚ अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के जन आन्दोलनों को व्यापक समर्थन दिलाने में न्यू मीडिया की भूमिका प्रमुख रही है। इसके बाद देश में जो सबसे बड़ी जनक्रांति 2014 के लोकभा चुनाव में आयी उसमें तो न्यू मीडिया के जरिये जमकर चुनाव प्रचार किया गया। फलस्वरूप नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि फेसबुक‚ ट्विटर, यू-ट्यूब,कोरा, लिंक्डइन, विकिपीडिया जैसी सोशल साइट्स पर अब लोग राष्ट्रीय‚ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर जमकर बहस करने लगे हैं। इसके फलस्वरूप जनमानस में जागरूकता पैदा हुई है। ब्लाग व वेबपोर्टल पर लोग खुलकर बेबाक रूप से अपने विचार रख रहे हैं। यू-ट्यूब पर किसी भी मुद्दे से सम्बन्धित वीडियो देखे जा सकते हैं।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि न्यू मीडिया ने समाज में अपनी पैठ मजबूत की है। गौरतलब यह है कि युवा पीढ़ी इससे अधिकाधिक रूप से जुड़ी हुई है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि भविष्य में न्यू मीडिया अधिक संभावनाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से जुड़ेगी। और चूंकि यह युवाओं की मीडिया है‚ तो इस बात की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं कि सामाजिक सरोकारों से जुड़ी युवा पीढ़ी पत्रकारिता की विधा को भी नवीन आयाम प्रदान करेगी। ‘इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (आईएएमएआई) के अनुसार, 30 जून तक भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 35 करोड़ 20 लाख पहुंच चुकी है। जबकि देश में इस वर्ष की पहली छमाही में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 5.2 करोड़ नए उपभोक्ता जुड़े हैं।

एक बहुत ही दिलचस्प बात यह है कि 21.30 करोड़ (या कुल उपभोक्ताओं की संख्या के 60 प्रतिशत से अधिक) लोग मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। आईएएमएआई के अनुसार, भारत में इंटरनेट एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है। इंटरनेट यूजर की बढ़ती तादाद से स्पष्ट है कि भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल अब सभी क्षेत्रों में होने लगा है। यह इंटरनेट उद्योग के साथ-साथ समाज के लिए भी अच्छी बात है। साथ ही आईएएमएआई के आकड़ों के अनुसार, भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या एक करोड़ से 10 करोड़ पहुंचने में एक दशक लगे और 10 करोड़ से 20 करोड़ होने में तीन साल। हालांकि, इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 20 करोड़ से 30 करोड़ होने में सिर्फ एक साल लगे हैं।

दिवाकर अवस्थी

दिवाकर अवस्थी

शोध छात्र, वेब पत्रकारिता महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्रकूट एवं सह प्रान्त प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अवध प्रान्त 9044126840