“कुण्डलिया छंद”
घर घर बाजे बाजना, तोर मोर परिवार
मन की मन में रह गयी, कागा खाय विचार
कागा खाय विचार, भले बहि जाए माटी
खुन्नस की दीवार, बनाये कद अरु काठी
कह गौतम कविराय, नैन भरि आये झर झर
परबस है समुदाय, विरानी छायी घर घर
महातम मिश्र “गौतम”
घर घर बाजे बाजना, तोर मोर परिवार
मन की मन में रह गयी, कागा खाय विचार
कागा खाय विचार, भले बहि जाए माटी
खुन्नस की दीवार, बनाये कद अरु काठी
कह गौतम कविराय, नैन भरि आये झर झर
परबस है समुदाय, विरानी छायी घर घर
महातम मिश्र “गौतम”