गीत/नवगीत

गीत – बस रोने का मन है

नीले-नभ पर स्याह रात की चादर सा घन है.
ऐसे में क्या लिखूँ आज बस रोने का मन है.

कभी-कभी छोटी बातें भी
दिल पर वार करें.
टूट-टूट जाते वे दिल जो
दिल से प्यार करें.
बाहर चुप्पी छाई लेकिन भीतर गर्जन है.
ऐसे में क्या लिखूँ आज बस रोने का मन है.

शायद सुन ली मैंने वो जो
तूने नहीं कही.
इसीलिये मैं असमंजस में
सारी रात रही.
क्या मानूँ मैं क्या ना मानूँ मन में मंथन है.
ऐसे में क्या लिखूँ आज बस रोने का मन है.

मुझको कितना अधिक सताती
रही याद तेरी.
मगर सजन तूने भी कोई
खबर न ली मेरी.
कितना सूना-सूना मेरे मन का आँगन है.
ऐसे में क्या लिखूँ आज बस रोने का मन है.

अर्चना पांडा

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका