तपिश!! और अब कब तक ……!!!
जब कहीं लाबा सुलगता है
भीतर !बहुत भीतर तब !
तब आग और तपिश
दिखाई नहीं देते
मौन के भीतर
की ध्वनि
सुनो !
सुनो कि एक अंगार पर
जीवन और मृत्यु दोनों
साथ साथ कैसे चलते
भीतर मृत्यु जलाती
ऊष्मा भीतर ही
रह जाती
सुनो !
इस गिरि पर नदी बहती
पंछी चहकते उड़ते फिरते
मगर अग्नि कहाँ थमती
प्रकट हो जाती
जलाती नष्ट करती
और शांत हो
जाती ।
ये लाबा सुलग रहा है
सुनो कान लगाके सध्यान
कहीं भीतर पृथ्वी के
बहुत भीतर सुनो !
सुन सकते हो तो
ये प्रकट होगा
जरूर !
ये अग्नि नष्ट करेगी स्वनिवास
मिटा देगी खर पतवार
जला देगी अवांछित बेकार
इस मौन को सुनो
अभी !अविलंब आज
गर्म लाबे की
आवाज़ !
पृथ्वी के भीतर बहुत भीतर
मन भीतर सुलग रहा है
आज ! प्रचंड ज्वाला
हाहाकार हा बज्रपात
ऐ निष्ठुर् मानव
सुन ! सुन सुन
और सुलग
आज !
…… अंशु (मन की बात)