कविता

बेटी की फरियाद

बेटी की फरियाद
~~~~~~~~~~~~
भगवान मैंने क्या किया पाप का करम,
क्यों दिया तूने मुझे बेटी घर जनम।

कभी नहीं मिलती जीवन में बेटी को आराम,
कोई नहीं पूरा करता है बेटी का अरमान,
हर कदम पर देती है सच्चाई का इम्तिहान,
इस दुनिया में बेटी का कहीं नहीं है धाम,
भरे रहते हैं हरदम आँसू से नयन…

कठपुतली समझ पुरुषों ने इसारों पर नचाया,
चित बहलाने के लिए नारी संग रास रचाया,
अपनी अय्यासी को नारी का पाप बताया,
सीता जैसी सति पर भी लोगों ने दाग लगाया,
हरदम सहती रहती है सबकी जुल्म- सितम…

नारियाँ ही बनाती है समाज और संसार,
फिर क्यों नहीं मिलता है उसे कोई अधिकार,
उसके पतझड़ जीवन में क्यों आती नहीं बहार,
इस विकसित दुनिया में भी क्यों है वह लाचार,
नारियाँ ही निभाती है सभी रश्म हरदम…

तुमने ही बनाया है दुर्गा जैसी नारी,
आज क्यों बनी है ये अबला और बेचारी,
नारी ने कितनों की किस्मत संवारी,
पर खुद है बेचारी किस्मत की मारी,
ऐ किस्मत लिखने वाले तेरी कैसी है कलम…

बेटी से अच्छा मुझे बनाता एक चिड़िया,
उड़ती उन्मुक्त गगन न होती कोई बेड़ियाँ,
दुनिया में कहीं नहीं सुरक्षित है नारियाँ,
पंछी होने पर मेरा भी होता एक अपना आशियाँ,
अब बदलना होगा तुझे नारी का जीवन,
क्यों दिया तुने मुझे बेटी घर जनम।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

2 thoughts on “बेटी की फरियाद

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    स्थिति बदलने की शुरुआत होते दिखती है फिर निराशा होने लगती है आस पास कोई घटना घट जाती है तो

Comments are closed.