राजनीति

यह कैसी असहिष्णुता ?

बिहार चुनावों के बाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक लंदन और तुर्की की यात्रा के बाद राजनैतिक गलियारों में आशा व्यक्त की जा रही थी कि अब सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता का मुददा कुछ सीमा तक थम जायेगा लेकिन अब यह कुछ अधिक ही जहरीला होता जा रहा है। यह भारत में परिपक्व लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में भारत विरोधी ही नहीं अपितु पीएम मोदी के खिलाफ भी एक सुनियोजित साजिश के तहत महाअभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान में एक और शख्सियत शामिल हो गयी है और वह हैं तिब्बती धर्मगुरू दलाईलामा। वहीं दूसरी ओर एक दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह भी है कि पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और पूर्व मंत्री मणिशंकर अय्यर जैसे लोग पाकिस्तान जाकर पीएम मोदी और भारत विरोधी बयान देकर पता नहीं अपने आपको क्या साबित करना चाह रहे हैं?

सबसे पहले बात करते हैं दलाई लामा की। दलाई लामा ने विगत दिनों चुनाव परिणाम आने के बाद बयान दिया है कि बिहार की जनता ने जता दिया है कि इस देश का हिंदू अभी भी सहिष्णु है और शांतिप्रिय है। वे यह बयान देते समय यह भूल गये कि वे आज की तारीख में भारत सरकार की सहिष्णुता के कारण ही भारत में शरणार्थी के रूप में सुरक्षित रह पा रहे हैं। नहीं तो भारत के धुर विरोधी चीन के सबसे बड़े मोस्ट वाटेंड हैं। यदि भारत सरकार चाह ले तो आज दलाई लामा को पकड़कर चीन के हवाले कर सकती है और इसके बाद भारत- चीन मैत्री भी कुछ सीमा तक प्रगाढ़ हो जायेगी।

यह बयान देते समय वे यह भी भूल गये कि आज वे भारत में जो कुछ भी सम्मान प्राप्त कर रहे हैं उसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उसके तमाम आनुषांगिक संगठन ही हैं जिनके कारण वे मंच पर आसीन होकर तिब्बत सबंधी अपनी बातों को दुनिया के सामने जगजाहिर कर रहे हैं। उनके बयान का तात्पर्य यह निकल रहा है कि आज देश का जो बहुसंख्यक समाज भारतीय जनता पार्टी को अपना वोट कर रहा है वह सबसे बड़ा असहिष्णु और दंगाई विचारधारा का मतदाता है। आज भारत में दलाई लामा व उनके समर्थकों की जो गतिविधियां चल रही हैं उनको आक्सीजन देने का काम संघपरिवार भारत – तिब्बत मैत्री सहयोग मंच के नाम से कर रहा है।यह इस मंच के काम का ही परिणाम है कि आज चीन में जिस प्रकार से तिब्बतियों के मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हो रहा है उसका खुला विरोध संघपरिवार के दुनियाभर में स्वयंसेवकों के माध्यम से ही हो रहा है।

अगर देश का हिंदू समाज सहिष्णु न होता तो आज भारत में उनकी जो निर्वासित सरकार चल पा रही है वह यहां पर टिक न पाती और तिब्बत का नामोनिशान हवा हो चुका होता। दलाई लामा को स्पष्ट करना होगा कि उनका यह बयान किस आधार पर दिया गया है और क्यों ? या फिर वे भी किसी की साजिश का शिकार हो गये हैं या फिर कांग्रेस या महागठंधन के दबाव में आकर सुनियोजित साजिश में शामिल लोगों से रिश्वत खाकर यह बयानबाजी कर रहे हैं? अगर उनकों कांग्रेसी व वामपंथियों के प्रति इतनी ही सहिष्णुता दिखलायी पड़ रही है तो फिर वे अभी 65 वर्षों से देश में शासन कर रहे लोगों से तिब्बत के हित की बात क्यों नहीं निकलवा सके ? दलाइलामा ने यह तथाकथित बयान देकर यह साबित कर दिया है कि अब वे बहुत बूढ़े हो चुके हैं तथा उनकी यादशाश्त भी समाप्त हो चुकी है।

उन्होनें बिहार के चुनाव परिणामों व सहिष्णुता पर बयान देकर अपनी पोल खोल दी है। अब तो ऐसा भी प्रतीत हो रहा है कि भारत में तिब्बत की जो निर्वासित सरकार काम कर रही है वहां पर उसके निर्वासित प्रधानमंत्री व सरकार कुछ न कुछ संदिग्ध गतिविधियां भी चला रही है। उनके बयान से यह साफ हो गया है कि उनकी असहिष्णुता पीएम मोदी के खिलाफ ही है।

वहीं एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में अभी जब पीएम मोदी लंदन में प्रेसवार्ता कर रहे थे तब वहां के भारत विरोधी पश्चिमी मीडिया जो भारत में मजबूत सरकार को नहीं देख सकता पता नहीं किन लोगों के इशारों पर पीएम मोदी से असहिष्णुता और गुजरात सहित अनेक विवादित व गैरजरूरी मुददों पर अपमानित करने वाले प्रश्न पूछे हैं लेकिन हमारे पीएम ने काफी संजीदगी के साथ बिना घबराये हुये सभी प्रश्नों के सटीक जवाब देकर उन लोगों की बोलती बंद कर दी है।

खबर यह भी आयी है कि भारत विरोधी साहित्य लिखने वाले तथा विदेशी फंडिग के आधार पर जीवनयापन करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों ने सलमान रूश्दी के नेतृत्व में ब्रिटिश पीएम कैमरून को पत्र लिखकर मांग कर डाली कि भरत के पीएम मोदी से देश में बढ़ती असहिष्णुता पर आप बात करें और पूछें कि आखिर पुरस्कार वापसी आदि क्यों हो ही हैं यह सब बात निश्चय ही बेहद पीड़ादायक और अपमानजनक हैं। इन सब बातों से असहिष्णुता की बात करने वालें लोगों कीदेशभक्ति व गतिविधियों पर संदेह व्यक्त होना लाजिमी है। अब यह लोग लोकतंत्र की परिपक्वता और अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा का अभूतपूर्व व खुला दुरूपयोग कर रहे हैं।

इन लोगों को यह नहीं पता कि आज देश में जो वातावरण है उसकी जड़ में वंशवादी शासन की परम्परा है। आज देश में वंशवादी शासकों के खिलाफ एक वातावरण उत्पन्न हुआ है तथा किसी कारणवश उसे बिहार में आक्सीजन मिल गयी है यह उसी प्रकार से मिली हे कि जब कोई व्यक्ति अपनी अंतिम सांसें गिन रहा होता है तो उसे चिकित्सक वेंटीलेंटर पर छोड़ देते हैं ।यही सबकुछ बिहार में हुआ है। बिहार में मोदी की हार नहीं हुई है। अपितु बिहार में स्थानीय जातिगत समीकरणों की जीत हुई है और उसे आधार मानकर हिंदू समाज को सहिष्णु और असहिष्णु समाज में बांटना दलाईलामा और उन जैसों की मूर्खता की पराकाष्ठा व देशद्रोह है।

अब भारत सरकार को तिब्बती धर्मगुरू की भारत में चल रही गतिविधियों को बंद करवा देना चाहिये और चीन के साथ मैत्री करनी चाहिए। तब दलाई लामा को पता चल जायेगा कि क्या होती है सहिष्णुता और असहिष्णुता।

— मृत्युंजय दीक्षित