महिलाओं का आदर्श, वीरांगना एवं पूज्या देवी महारानी लक्ष्मीबाई
ओ३म्
वैदिक धर्म के स्त्रियोचित व क्षत्राणियों के सभी गुणों से पूर्णतया सम्पन्न मातृस्वरूपा महारानी लक्ष्मीबाई जी का आज 19 नवम्बर, 1828 को जन्म दिवस है। 18 जून, 1858 को वह वीरगति को प्राप्त हुईं थी। आपने एक ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। 7 वर्ष की आयु में आपका विवाह हुआ और 19 वर्ष की आयु में आप विधवा हो गईं। झांसी राज्य को अंग्रेजी राज्य में मिलाने के अंग्रेजों के अनुचित निर्णय के आगे झुकने के स्थान पर एक स्त्री होकर भी आपने उनसे युद्ध किया और अपनी वीरता और पराक्रम का लोहा मनवाया। उन जैसी वीर देवी संसार के इतिहास में दूसरी नहीं हुई है। वह भी तब, जब कि भारत में अन्धविश्वास और पाखण्ड अपनी चरमावस्था पर थे जिसमें एक विधवा नारी के लिए सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करना आसान नहीं था। अंग्रेजो द्वारा झांसी के अंगेजी राज्य में विलय के समय उन्होंने गर्जना के स्वरों में कहा था — ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।’
झांसी की रक्षा के लिए 22 वर्ष की आयु में उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध तलवार उठानी पड़ी, तब उनका एक वीरांगना का तेजस्वी व ओजस्वी रूप देशवासियों के सम्मुख आया था। उन्होंने पहले झांसी, उसके बाद कालपी और अन्त में ग्वालियार में अंग्रेजों के विरुद्ध कर्तव्य भावना से जो युद्ध किया, ऐसा उदाहरण दुनिया के इतिहास में इससे पूर्व पढ़ने को नहीं मिलता।
आज उनके जन्म दिन पर हम उनको अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनका जीवन एक आदर्श स्त्री का महनीय जीवन था। उन पर देश को गर्व है तथा विश्व भी उन पर गर्व कर सकता है। वह मर कर भी अपने वीरतापूर्ण कार्यों से अमर हैं और देश के कोटि-कोटि देशभक्तों के हृदयों में आज भी जीवित हंै। हम समझते है कि जब तक सूरज चांद रहेगें, तब तक देशभक्त वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई जी का नाम चिरस्थाई रहेगा और वह सारी दुनियां के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।
बचपन में हमने स्कूल की पुस्तकों में पढ़ा था -‘बुन्देले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।’ यह पंक्तियां आज 55 साल बाद भी स्मृति पटल से हटी नहीं हैं। बचपन में जब हमने यह पंक्तियां याद की थी और हम इन्हें गाते थे, तो रोमांच हो आता था।
–मनमोहन कुमार आर्य
मनमोहन भाई , झांसी की राणी लक्ष्मी बाई का आज जनम दिन है ,उस की याद को सर झुकाता हूँ .आज फिर आप ने १९६१ की यद् ताज़ा करा दी जब हम वोह किला देखने गए थे .
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर प्रसन्नता हुई। आप भाग्यशाली हैं कि आपने झाँसी का किला और वहां के कुछ अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान देखें हैं। मुझे जीवन में वहां जाने का अवसर नहीं मिला। आयु बढ़ने के कारण भविष्य में जाने की भी कोई उम्मीद नहीं हैं। मैंने रानी झांसी की एक जीवनी पढ़ी है. रानी झाँसी मे अपने राज्य की रक्षा का जो जज्बा था और उसके लिए उन्होंने एक नारी होते हुवे जो शौर्यपूर्ण अभूतपूर्व काम किया वह पढ़ने और नमन करने योग्य है। आज रानी लक्ष्मीबाई हमारे शिक्षाविदों के लिए गौण हो गई है। हमारी युवा पीढ़ी पूरी तरह से उन्हें भूल चुकी है। यह एक प्रकार का राजनीतिक दलों, शिक्षाविदों एवं एक विशेष विचारधारा के पोषक इतिहासकारों का मिला जुला षड्यंत्र है। आज के युवा व अन्य सभी लोगो की पसंद फ़िल्मी सितारे और क्रिकेट हो गया है। आज भारत में खाओ पियो और जीवो -Drink, Eat and Be Marry की अपसंस्कृति जारी है। शायद यही भविष्य का भारत है। आभार।