कविता
मुद्दत बाद ……
उम्रें ठहर गईं
उनकी नजरें मिलीं …….
एक दूसरे को देखा ,
जैसे तपती गर्मी में
ठन्डे पानी के घूंट भर लिए हों ।
पर ये क्या ,
उनकी प्यास तो वैसे ही धरी हुई थी ।
वो दिन ,
वो घडी ,
वो पल
ऐसे गुजरा जैसे वो मेले में हो
मेले के हिंडोले में
बैठा अपनी उम्रों को
दे रहे हो हिलोर
वो दोनों
उस पल,
उस घडी
उस दिन के
बन गये कर्जदार
अगले ही पल
उतरना था उन्हें हिंडोले से
चले जाना था मेले से
नही था उन्हें गम
मना लिया था उन्होंने मेला
चख ली थी
मेले की मिठाई
अब तो उन्हें रखनी थी
अपने-अपने अरमानों की
तह लगा कर …..!!!
…रितु शर्मा