कविता
हरी घास पर बैठ कर
गुलमोहर की छांव में
मैं सिर्फ तुम्हें सोचती हूँ
और मेरी उंगुलियाँ
पेड़ से गिरे फूलों की
नर्मी को महसूस करती हैं
भींगी हुई मिट्टी से
उठती सोंधी सी ख़ुशबू
‘मेरे हमसफ़र‘….
गुज़रे हुए मौसम की महक
वो दिलकश महक
जो मेरी साँसो से गुज़र कर
तेरी साँसो में समा गई है
और तेरे प्यार का एहसास
मेरे लबों की गुलाबी हंसी बन गई है
दूर तेरे ख़यालों में गुम
शाख़-दर-शाख़
अपने ख़ुशनुमा पर लपेटे हुए
एक तितली बेखौफ़ उड़ रही है
और उसे देख कर ना जाने क्यूँ
मुझे ये एहसास होता है
‘मेरे ख़यालों को भी पर मिल गए हैं‘….!!!
— रश्मि अभय