जाड़े की रात
एक गरीब की आँखों देखी कह रही हूँ बात,
बैठकर अलाव के पास कटती जाड़े की रात।
आग के पास ऊकड़ू बैठे ही एक नींद वो सो गया,
ठंड लगी जब जोर से तो अचानक जग गया,
खत्म हो गयी पुआल बूझ गयी है आग,
अभी बारह ही बजे हैं कैसे कटेगी रात,
अपने छोटे बच्चे को बैठाकर गोद में साथ,
बैठकर अलाव के पास कटती जाड़े की रात।
पढ़ाई के लिए रखे पैसे से कम्बल लाना,
क्या जीवन से ज्यादा तात् जरुरी है पढ़ाना,
सुनकर ऐसी बात पिता के आँखें हो गये नम,
प्रातः गये जब कम्बल लाने पैसे पड़ गये कम,
गरीबी मानव जीवन की सबसे बड़ी है शाप,
बैठकर अलाव के पास कटती जाड़े की रात।
दुनिया रजाई में सिमटी परंतु कर रहा वो काम,
इस बेरहम मौसम में भी एक पल नहीं आराम,
नहीं कमायेगा तो शाम को कैसे करेगा भोजन,
इस गरीब मजदूर पर सब कोई करता शोषण,
सरकार भी मदद करती है देखकर धर्म-जात,
बैठकर अलाव के पास कटती जाड़े की रात।
-दीपिका कुमारी दीप्ति