कविता

मन

मन विचार मगन है
ह्रदय में धधकती अगन है
आँखे हुई जलमग्न
जिह्वा में कम्पन है
ऐसा ही होता है जब
अपना ही ह्रदय साथ छोड़ दे
माझी ही नोका की पतवार छोड़ दे
हाय… क्या कहें उस मानसिकता को
जो धोखे के सिवा कुछ न दे सकी
अब उस से प्रेम करूँ या नफरत
बस मेरी हर धमनी में
अभी तो मचा यही क्रंदन है
थाम सकता नही उसको
छोड़ भी नही सकता
अब तू ही बता विधाता
वो तो विष निकल गया
जिसे मैं सोचता था चन्दन है।

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- [email protected]

One thought on “मन

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

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