मुक्तक : आक्रोश/क्रोध
क्रोधी लोभी लालची, बिन मारे मरि जाय
कभी न खुद शीतल रहें, औरन दुख दे जाय
आक्रोश जस जस बढ़े, तस बाढ़े उत्पात
महिमा मानुष कत जड़ें, कनक क्रूरता पाय ॥
— महातम मिश्र
क्रोधी लोभी लालची, बिन मारे मरि जाय
कभी न खुद शीतल रहें, औरन दुख दे जाय
आक्रोश जस जस बढ़े, तस बाढ़े उत्पात
महिमा मानुष कत जड़ें, कनक क्रूरता पाय ॥
— महातम मिश्र