गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : हर पल भरा-भरा है

तेरे सँग  मेरे जीवन का हर पल भरा-भरा है.
यादों की गुदगुदी ह्रदय में होती ज़रा-ज़रा है.

डर था कैसे लहराएगी भावों वाली  फसलें,
पर तेरे होने से मन का उपवन हरा-हरा है.

इतनी चाहत कह ना पाऊँ  दूर रहूँ मैं कैसे,
खो ना जाए प्यार की दौलत ये दिल डरा-डरा है.

तुम पर मरता तुम से जीता ऐसी हालत दिल की,
क्या मानूँ ये दिल जीता है या फिर मरा-मरा है.

तू ही मेरी चिंगारी है और आग भी तू है,
तुझसे मेरी रचनाओं का सोना खरा-खरा है.

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका

3 thoughts on “ग़ज़ल : हर पल भरा-भरा है

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी अर्चना जी, अति सुंदर गज़ल के लिए आभार.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर गज़ल

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