तेरी याद
सूरज जब आँखें भी नहीं खोलता
और मेरे छत के मुंडेर पर
जब नन्ही चिड़िया चहचहाती है
ना जाने क्यूँ मुझे तब
तुम्हारी याद बहुत आती है….
याद आते हो तुम मुझे
सुबह की पहली किरण के साथ
तब अखबार पर निगाहें गड़ाए
चाय की हर चुस्की के साथ
पीती जाती हूँ मैं
तुम्हारे ना होने के एहसास को…
भोर के उजालों से शुरू होता
तुम्हारी यादों का सफर
रात के गहन अँधेरों में भी
अनवरत चलता हीं रहता है
उफ़्फ़…कितना लंबा है
तुम्हारी यादों का सफर…
रोज़ जिस मोड से शुरू होता है
उसी मोड़ पर आकार ठहर भी जाता है
बिलकुल इस धरा की तरह
जो सदियों से एक हीं धुरी पर सदैव गतिमान है
सच बताना…क्या मैं भी तुम्हें
इस कदर हीं याद आती हूँ ???
प्रिय सखी रश्मि जी, यादों का सफर होता ही ऐसा है, बढ़िया.
रश्मि अभय…