कविता-2
दो शब्द जो होले से बोले
पलके नयनो पर भारी सी
क्या होता मेरा हाल सखी
जो हाले दिल सुनाते वो
तलब लगी थी दर्शन की
आँखे भटकी चातक सी
क्या होता मेरा हाल सखी
जो सामने उनको पाती तो
मैं जैसे खुद को खो बैठी
जो हल्का सा स्पर्श मिला उनका
क्या होता मेरा हाल सखी
गर पहलू मैं बैठाते वो
सिमटी मैं हया के आँचल में
हुई लाल लाज के पहरे में
क्या होता मेरा हाल सखी
गर प्रणय निवेदन करते वो
जिस दिन कान्हा के गीत सुनु
सुध बुध अपनी बिसरा जाऊँ
क्या होगा मेरा हाल सखी
गर कान्हा संग रास रचा पाऊँ
— विनय पंवार
मोहक कविता !