आखीर किसें कहे अपना..
घर में शहनाई का माहौल बना हुआ था | परिवार के सभी सदस्य नयें मेहमान के खातीरदारी में लगे हुयें थें| पूरे संबंधी शादी में बढचढ कर हिस्सा ले रहे थें| शालिनी को भी जयमाल के लियें तैयार किया गया| बारात आयी ,द्वार पूजा हुआ उसके बाद वर वधु को स्टेज पर लाया गया|शालिनी और संजय एक दूसरे को जयमाला पहनायें,फिर शादी का रस्म पूरा किया गया| विदाई के पूर्व शालिनी की मॉ शालिनी को समझाते हुयें कहती हैं बेटी आज से तुम्हारा घर यें नही रहा अब सास ससुर का घर ही तुम्हारा घर हैं , तुम अपना पूरा समय सास ससुर और पति के सेवा में लगाना ,घर को अच्छे तरीके सें सहेज कर रखना यही सब तुम्हारा कर्तव्य हैं | यें सब करने से ही तुम अपने सास ससुर की प्यारी बहु बन सकती हो| शालिनी हॉ में हॉ मिलाती रही|विदाई का समय हुआ ,शालिनी की विदाई हुई , पूरा घर एक शालिनी के चले जाने सें सुना सुना हो गया ,सबकी ऑखे ऑसु से नम हो गयें| दुल्हन बन शालिनी ससुराल पहूँची | ससुराल में कुछ दिन तो ठिक सें गुजरे लेकिन कुछ ही दिनों बाद दहेज को लेकर शालिनी को प्रताडित कीया जाने लगा| तुम क्या लेकर आयी हो ,कुछ तो नही लायी अपने घर सें प्रतिदिन उसें सास द्वारा खरी खोटी सुनने को मिलता| शालिनी चुपचाप सुनते रहती कोई जवाब नही देती क्योकि उसकी मॉ जो समझायी थी कि कभी सास ससुर के मूँह नही लगना| दिन प्रतिदिन बात बढती गयी संजय के कानो तक भी यें बात्ते पहूँच गयी| शालिनी अब ससुराल में घुटघुट कर जीनें लगी| एक दिन बात इतनी बढ गयी कि शालिनी उस रात बिन खायें पिये ही अपना कमरा में जाकर रो रही थी तभी संजय उसके पास आता हैं और बोलता हैं मॉ ठिक कहती हैं तुम अपने घर सें दहेज में लायी ही क्या हो, इतना दुःख हैं और इतना ही रोना आ रहा हैं तो यहॉ क्यो हो ,अपना समान समेटो और चली जा अपने घर | शालिनी संजय की बात सुनकर और फुटफुट कर रोने लगी ,आखिर मैं किस घर को अपन् कहूँ| मॉ पापा का घर या फिर सास ससुर का सोचते हुयें गहरी निद्रा में सो गयी|
सत्य को व्यक्त करती लघुकथा !
सत्य को व्यक्त करती लघुकथा !
dhanybad sir
दहेज़ का यह कोहड़ भारत से कब जाएगा ?
क्या पता सर कब जायेगा
प्रिय सखी निवेदिता जी, सच्चाई की सुंदर प्रस्तुति.
शुक्रिया आपका…