वो सोचते होंगे
वो सोचते होंगे
कितनी आसानी से भुला दिया मैंने उनको
कितना हसाया था
फिर क्यों रुला दिया मैंने उनको
सच तो ये है
न कभी भुलाया न कभी रुलाया है उनको
ये तो वक़्त की आँधियाँ थी
जो चली तो ऐसी चली
कि हर अहसास उड़ा ले गयी
और खामोशियों में सुला दिया उनको
और अन्तर्मन् तक हिला दिया हमको
और उन्हें लगता है
कितनी आसानी से भुला दिया मैंने उनको
एक सच ये भी है
चाहे वो आज मेरे हक़दार नही
मगर शब्दों में मेरे स्याही बन रहते है
आँखों में चाहे उनके सपने नही
पर पलकों में आंसू बन रहते हैं
फिर भी खुद को न माफ़ कर पाएंगे
गर अब भी यही लगता है उनको
की कितनी आसानी से भुला दिया मैंने उनको
बहुत सुंदर कविता !
प्रिय महेश भाई जी, वक़्त की आँधियों को कब कौन रोक पाया है? अति सुंदर भावपूर्ण कविता.
सादर धन्यवाद
सादर धन्यवाद
प्रिय महेश भाई जी, वक़्त की आँधियों को कब कौन रोक पाया है? अति सुंदर भावपूर्ण कविता.
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब
धन्यवाद मित्र
धन्यवाद मित्र