कविता

कविता : होली

होली !
हाँ कब की
होली
मैं तो तेरी पिया
उस पल से
जब तिरछी नजर से
तुमने मुझे देखा था
और मैं खो गयी थी
उन आँखों मैं

हाँ उस पल भी
जब तुमने मुझे हाथ थाम कर
वरमाला पहनाई थी
और मैं बंध गयी थी
उसी पल तेरे प्यार में
हाँ उस पल भी
जब गठजोड़ से जुड़ कर
तुमने अग्नि समक्ष
लिए थे मेरे संग फेरे
और तब से मेरी परिधि
सिर्फ तुम्ही हो एक उपहार से

रंगों की होली
सिर्फ कच्चे रंगों की
तेरे मेरे प्यार का रंग
इतना गूढ़ा
तेरे एक पल के प्यार से
मेरी तो रंग बिरंगी होली
कब की होली

— नीलिमा शर्मा निविया

नीलिमा शर्मा (निविया)

नाम _नीलिमा शर्मा ( निविया ) जन्म - २ ६ सितम्बर शिक्षा _परास्नातक अर्थशास्त्र बी एड - देहरादून /दिल्ली निवास ,सी -2 जनकपुरी - , नयी दिल्ली 110058 प्रकाशित साँझा काव्य संग्रह - एक साँस मेरी , कस्तूरी , पग्दंदियाँ , शब्दों की चहल कदमी गुलमोहर , शुभमस्तु , धरती अपनी अपनी , आसमा अपना अपना , सपने अपने अपने , तुहिन , माँ की पुकार, कई वेब / प्रिंट पत्र पत्रिकाओ में कविताये / कहानिया प्रकाशित, 'मुट्ठी भर अक्षर' का सह संपादन

2 thoughts on “कविता : होली

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सुन्दर कविता .

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